अहमदाबाद। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी जेलों में बंद 54 भारतीय युद्धबंदियों के मामले में आदेशों का पालन नहीं करने पर केन्द्र सरकार से कड़ी नाराजगी जताई। साथ ही इन आदेशों का पालन नहीं करने पर केन्द्र को 20 हजार रूपए का दंड भी ठोका। यह रकम सुप्रीम कोर्ट के लीगल सेल में जमा करानी होगी।

न्यायाधीश टी एस ठाकुर, न्यायाधीश आर के अग्रवाल व न्यायाधीश श्रीमती आर बानुमति की खंडपीठ ने इस मामले में केन्द्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर इन युद्धबंदियों की स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को रखी है। सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष सितम्बर व नवम्बर में युद्धबंदियों के परिजनों को दिए जाने वाले लाभों तथा इन युद्धबंदियों को वापस लाए जाने की रूपरेखा बताने का निर्देश दिया था। लेकिन इस मामले में केन्द्र सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया।

याचिकाकर्ता के वकील किशोर एम पॉल ने दलील दी कि केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के गत आदेशों का पालन नहीं किया है। सरकार की ओर से इस मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखती है। 44 वर्ष बाद भी ये युद्धबंदी किस तरह भारत वापस आएंगे इसके बारे में कोई योजना नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र के इस रवैए पर कड़ी आपत्ति जताते हुए टिप्पणी की कि युद्धंबदी इतने वर्षो से जेल में बंद हैं और सरकार को इनकी कोई चिंता नहीं है। सरकार ने इन्हें वापस लाने के लिए कोई प्रभावी प्रयास नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने इन युद्धबंदियों के मानव अधिकार व मूलभूत अधिकार के उल्लंघन को लेकर भी चिंता व्यक्त की।

गुजरात उच्च न्यायालय ने भी इस मामले में दस वर्ष तक जवाब नहीं देने पर केन्द्र सरकार को 20 हजार का दंड दिया था। उच्च न्यायालय ने दिसम्बर 2011 में एक ऎतिहासिक फैसले में केन्द्र सरकार से इन 54 भारतीय युद्ध बंदियों को नौकरी पर मानते हुए उनके परिजनों को 2 महीने के भीतर पूरा वेतन तथा उनकी सेवानिवृत्ति के सभी लाभ देने को कहा था।

इन युद्धबंदियों में दो गुजरात के कैप्टन कल्याण सिंह राठौड़ (साबरकांठा जिला का चांदरडी गांव) व फ्लाइट लेफ्टिनेंट नागास्वामी शंकर (वडोदरा) के हैं। उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से इन युद्धबंदियों को पाकिस्तान से जेल से छुड़ाने के मुद्दे को 2 महीने के भीतर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष उठाने को कहा था। केन्द्र सरकार ने गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के हीरो रहे दिवंगत जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने गुजरात उच्च न्यायालय में वर्ष 1999 में याचिका दायर कर पाकिस्तान की जेलों में बंद 54 युद्धबंदियों को छुड़ाने, उन्हें डयूटी पर मानते हुए पूरा वेतन व सेवानिृवत्ति के लाभ देने, उनके परिजनों को मुआवजा देने तथा इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की गुहार लगाई थी। शिमला समझौते के बाद भारत ने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिक रिहा किए तथा भारत के 6 24 सैनिक वापस आए लेकिन शेष 54 युद्धबंदियों को पाकिस्तान ने रिहा नहीं किया।