लखनऊ। कचहरी बम धमाके के आरोपी तारिक कासमी को बांराबंकी की स्थानीय अदालत द्वारा आजीवन कारावास देने के फैसले को रिहाई मंच ने राजनीतिक फैसला करार देते हुए इसे इंसाफ का कत्ल बताया है। वहीं मंच ने हाशिमपुरा जनसंहार पर 26 अप्रैल को आयोजित होने वाले प्रदेश सरकार विरोधी सम्मेलन की अनुमति को निरस्त करने को लोकतंत्र की हत्या बताते हुए कहा कि सपा सरकार अपने खिलाफ इंसाफ के लिए उठने वाली आवाजों को दबाने पर तुल गई है जिसका खामियाजा उसे भुगतना होगा।

तारिक कासमी के अधिवक्ता व रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कियह शासन-प्रशासन के दबाव में दिया गया फैसला है जिसका मकसद तारिक कासमी और दिवंगत खालिद मुजाहिद को बाराबंकी से फर्जी तरीके से फंसाने, उन दोनों को गैर कानूनी हिरासत में रखने, उनके साथ सांप्रदायिक आधार पर उत्पीड़न करने जिसमें एसटीएफ के लोगों द्वारा मुंह में पेशाब करना, दाढ़ी नोचना, सूअर का गोश्त खिलाना शामिल है, को बचाने के लिए व मुस्लिम समाज के मनोबल को तोड़ने के लिए यह फैसला दिया गया है। उन्होंने कहा कि जस्टिस निमेष कमीशन की रिपोर्ट ने तारिक और खालिद की बाराबंकी से गिरफ्तारी को संदिग्ध बताते हुए फर्जी तरीके से उनके पास से हथियारों की बरामदगी दिखाने वाले दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की सिफारिश की थी तब ऐसे में तारिक को आम्र्स ऐक्ट में सजा देने का मतलब ही पुलिस वालों को बचाना है। इससे यह भी साफ हो जाता है कि दोषी पुलिस वालों को बचाने के लिए ही सरकार ने निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर ऐक्शन टेकन रिपोर्ट नहीं ले आई।

वहीं तारिक कासमी के दूसरे अधिवक्ता रणधीर सिंह सुमन ने कहा कि जिस तरह का फैसला आया है उसका कोई न्यायिक आधार ही नहीं है। उन्होंने बताया कि विधि के विरुद्ध आज बचाव पक्ष के वकीलों को कुर्सी भी नहीं दी गई और उन्हें अदालत में खड़ा रखकर फैसला सुनाया गया जो आतंकवाद के आरोप में बंद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों का मुकदमा लड़ने वाले वकीलों के प्रति शासन प्रशासन के भेद-भाव पूर्ण रवैए को दर्शाता है।

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि तारिक कासमी को आजीवन कारावास के फैसले एवं 26 अपै्रल को रिहाई मंच द्वारा आयोजित हाशिमपुरा के इंसाफ के सवाल पर प्रदेश सरकार विरोधी सम्मेलन की अनुमति को निरस्त करने की घटना ने इस बात को साफ कर दिया है कि सरकार इंसाफ के सवाल को अदालत से लेकर सड़क तक दबाने पर उतारू है। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने इस सम्मेलन से शांतिव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ने का हवाला दिया है जो अखिलेश सरकार के प्रशासन के मोदीकरण को दर्शाता है ठीक इसी तरह गुजरात में भी इंसाफ का सवाल उठाने वालों को साम्प्रदायिक सौहार्द का दुश्मन बताया जाता है। उन्होंने कहा कि लखनऊ प्रशासन एटीएम लूट कांड में तो खुलासे में विफल होने पर सिमी के नाम पर मुस्लिम युवकों को उससे जोड़ने की साम्प्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश करती है पर इंसाफ का सवाल उठाने वालों को शांति व्यवस्था में बाधा बताती है जो साबित करता है कि अखिलेश सरकार संघ परिवार के फासीवादी एजंेडे पर चल रही है।