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राज्य की ऊर्जा जरूरतों पर केन्द्र करे प्रभावी कार्यवाही: यासर शाह

उ0प्र0 के ऊर्जा राज्यमंत्री ने गुवाहाटी में विभिन्न राज्यों के ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा तथा खनन मंत्रियों के सम्मेलन को सम्बोधित किया

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के ऊर्जा राज्यमंत्री यासर शाह ने राज्य की ऊर्जा जरूरतों से सम्बन्धित चिन्ताओं को रेखांकित करते हुए कहा है कि केन्द्र सरकार को इस ओर पहल करके प्रभावी कार्यवाही करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सिर्फ आश्वासनों और वादों से काम नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बिजली व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बेहद गम्भीर है। इसे ध्यान में रखकर ऊर्जा विभाग के बजट में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी की गई है। वर्तमान सरकार से पूर्व जहां विभाग का बजट वर्ष 2011-12 में 9000 करोड़ रुपए था, उसे वर्ष 2015-16 में बढ़ाकर 27000 करोड़ रुपए कर दिया गया है।

ऊर्जा राज्यमंत्री  यासर शाह आज गुवाहाटी में विभिन्न राज्यों के ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा तथा खनन मंत्रियों के सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा किए जाने के लिए एम0ओ0यू0 के माध्यम से स्थापित होने वाले बिजली घरों हेतु जरूरी कोयला आवंटन, एटा में अल्ट्रा मेगा पावर प्लाण्ट, ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण तथा बन्दरगाह विहीन राज्यों (लैण्ड लाॅक्ड) के लिए विशेष नीति जैसे मुद्दों को केन्द्र सरकार को तुरन्त सुलझाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये सभी मुद्दे केन्द्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री पीयूष गोयल के साथ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बैठक में विगत 03 दिसम्बर, 2014 को उठाए गए थे, लेकिन अभी तक मात्र आश्वासनों के सिवाय केन्द्र की सरकार ने इस दिशा में कोई भी ठोस कार्यवाही नहीं की है।

ऊर्जा राज्यमंत्री ने कहा कि संविधान में ऊर्जा का मुद्दा समवर्ती सूची में शामिल है, इसलिए राज्यों और केन्द्र सरकार को मिलकर देश के प्रत्येक नागरिक को सस्ती दर पर पर्याप्त ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने का प्रबन्ध करना चाहिए। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार मुख्य रूप से ऊर्जा उत्पादन और पारेषण के क्षेत्र में कार्य कर रही है, जबकि उसके वितरण जैसे कठिन कार्य का प्रबन्ध मुख्य रूप से राज्यों द्वारा किया जाता रहा है। ऊर्जा वितरण के क्षेत्र में उतरने के लिए केन्द्र सरकार के ऊपर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, लेकिन उसने इस ओर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।

श्री यासर शाह ने कहा कि उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों में ऊर्जा वितरण कम्पनियां कठिन आर्थिक दौर से गुजर रही हैं और वे ऋण लेने की स्थिति में भी नहीं हैं। इसलिए केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के लिए घोषित की गई दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और नगरीय क्षेत्रों के लिए इंटीग्रेटेड पावर डेवलपमेन्ट स्कीम के लिए राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की भांति ही 90 प्रतिशत ग्राण्ट तथा 10 प्रतिशत लोन द्वारा फण्डिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए।

ऊर्जा राज्यमंत्री ने बन्दरगाह विहीन राज्यों के लिए विशेष नीति बनाए जाने पर जोर देते हुए कहा कि कोल लिंकेज नीति को तटीय राज्यों की नीति से अलग बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में 2009 के बाद स्थापित होने वाले ऊर्जा संयंत्रों के लिए कोल लिंकेज पाॅलिसी को अलग होना चाहिए। इसी प्रकार, ललितपुर थर्मल पावर प्लाण्ट की कोयले की जरूरत के सम्बन्ध में ऊर्जा क्षेत्र के अनुसार कोयले के मूल्य का निर्धारण भी शीघ्र किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 1320 मेगावाट की करछना परियोजना के कोल लिंकेज के स्थानान्तरण के सम्बन्ध में शीघ्र निर्णय लिया जाना जरूरी है।

श्री शाह ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में 16 घण्टे तथा शहरी क्षेत्रों में 22 से 24 घण्टे की विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 6000 मेगावाट की आवश्यकता है, जिसमें 2175 मेगावाट के बिड्स फाइनल हो चुके हैं, शेष 4000 मेगावाट से अधिक को केस-1 बिडिंग के अनुसार लिया जाना है। केस-1 बिडिंग डाॅक्यूमेन्ट में कई खामियां हैं, इसलिए अनुरोध किया गया है कि पुराने एस0बी0डी0 में कुछ संशोधन किए जाएं। इस सम्बन्ध में यह आश्वासन दिया गया था कि जनवरी-फरवरी, 2015 में नया डाॅक्यूमेन्ट जारी किया जाएगा, जिसे अभी तक नहीं किया गया है।

ऊर्जा राज्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश बीस करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं वाला एक बड़ा राज्य है। ऊर्जा की जरूरतांे को पूरा करने के लिए द्विपक्षीय काॅन्ट्रैक्ट के आधार पर खरीद की जाती रही है। वर्तमान में पारेषण क्षमता 6000 मेगावाट आवंटित की गई है, जो कि ऊर्जा जरूरतों के हिसाब से अपर्याप्त है। अतिरिक्त ऊर्जा के लिए पारेषण क्षमता को तत्काल बढ़ाया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वित्तीय पुनर्निर्धारण योजना अक्टूबर, 2012 में घोषित की गई थी, लेकिन इसकी तैयारी और बैंकों से स्वीकृति में पर्याप्त समय लगा। यह योजना 2013 के मध्य में शुरू हो सकी। वर्ष 2012-13 को प्रथम वर्ष माना गया, जो विभिन्न राज्यों के लिए वित्तीय पुनर्निर्धारण योजना की स्वीकृति से पूर्व ही बीत चुका था। बैंकों ने योजना के तहत आंशिक क्षतिपूर्ति जरूर की, लेकिन अभी भी वितरण कम्पनियां भारी घाटे से गुजर रही हैं। इन कम्पनियांे को राज्यों द्वारा पर्याप्त मदद की जा रही है, लेकिन फिर भी बैंकों के अधिक सहयोग की जरूरत है। इसलिए इस योजना को सफल बनाने के लिए वित्तीय वर्ष 2013-14 को योजना का प्रथम वर्ष माना जाए। बैंकों द्वारा वितरण कम्पनियांे को कम से कम 50 प्रतिशत तक की क्षतिपूर्ति का सहयोग किया जाए। केन्द्र सरकार ऋणों के ब्याज के ऊपर सब्सिडी प्रदान करे और वितरण कम्पनियांे को फण्ड दिए जाने के लिए अतिरिक्त ऋण मुहैया कराए जाने हेतु विशेष अनुमति राज्य सरकार को प्रदान की जाए।

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