हैदराबाद: सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज लिमिटेड (एससीएसएल) में करोड़ों रुपये के घोटाले से जुड़े मामले में हैदराबाद की एक विशेष अदालत ने अपना फैसला आज सुनाया। कोर्ट ने कंपनी के संस्थापक रामलिंगा राजू समेत 10 लोगों को दोषी करार दिया है। रामलिंगा समेत दसों आरोपियों को 7-7 साल की सजा सुनाई गई है। अदालत ने रामलिंगा राजू पर 5 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यह मामला 7 जनवरी 2009 को सामने आया था।

भारत के कापरेरेट जगत को हिला देने वाली अब तक की सबसे बड़ी लेखा धोखाधड़ी के छह साल बाद आज सत्यम प्रमुख बी रामलिंग राजू और नौ अन्य को एक विशेष अदालत ने कंपनी के खातों में हेरफेर से जुड़े 7,000 करोड़ रुपये के घोटाले में आपराधिक षडयंत्र और धोखाधड़ी का दोषी पाया। विशेष न्यायाधीश बी वी एल एन चक्रवर्ती ने इस मामले में राजू और पूर्व कर्मचारी जी रामकृष्ण को भारतीय दंड संहिता की धारा 201 (अपराध के साक्ष्य गायब करना) के तहत दोषी पाया। इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी।

सीबीआई हैदराबाद क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक वी चंद्रशेखर के मुताबिक राजू के एक अन्य भाई बी सूर्यनारायण राजू और पूर्व आंतरिक मुख्य लेखा परीक्षक वी एस प्रभाकर गुप्ता को छोड़कर सभी अन्य आठों आरोपियों को सुरक्षा में जालसाजी, धोखाधड़ी के लिए जालसाजी और गलत खाते तैयार करने से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 468, 471 और 477ए के तहत दोषी पाया गया।

लेखा धोखाधड़ी 7,000 करोड़ रुपए तक की थी और इससे निवेशकों को अनुमानत: 14,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ जबकि राजू तथा अन्य को 1900 करोड़ रुपए का अनुचित लाभ हुआ। रामलिंग राजू और उनके भाई तथा सत्यम के पूर्व प्रबंध निदेशक बी राम राजू को भरोसा तोड़ने के आपराधिक मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के तहत दोषी पाया गया। अदालत में जब फैसला सुनाया जा रहा था तो सभी 10 आरोपी मौजूद थे। हालांकि, मीडिया को अनुमति नहीं मिली थी। फैसले की घोषणा के बाद न्यायाधीश ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह सभी आरोपियों को हिरासत में ले ले।

देश की सबसे बड़ी लेखा धोखाधड़ी के तौर पर कुख्यात सत्यम घोटाला सात जनवरी 2009 को सामने आया था जबकि कंपनी के संस्थापक और तत्कालीन चेयरमैन रामलिंग राजू ने कथित तौर पर खातों में हेरा-फेरी तथा कई साल तक मुनाफा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की बात स्वीकार की थी। उसके दो दिन बाद ही राजू को उनके भाई राम राजू तथा अन्य सहित आंध्र प्रदेश पुलिस की अपराध जांच शाखा ने गिरफ्तार कर लिया था। छह साल पहले शुरू हुये मामले की सुनवाई में करीब 3,000 दस्तावेजों को रखा गया और 226 गवाहों से पूछताछ की गई।