संकटमोचन मंदिर में ठुमरी पेश करेंगे उस्ताद गुलाम अली 

नई दिल्ली : मशहूर गज़ल गायक उस्ताद ग़ुलाम अली बुधवार को काशी के ऐतिहासिक संकटमोचन मंदिर में ठुमरी प्रस्तुत करेंगे। बनारस के प्राचीन हनुमान मंदिर में गाने वाले वे पहले पाकिस्तानी कलाकार होंगे।

उस्ताद ग़ुलाम अली ने कहा, ‘दोनों देशों के बीच सिर्फ़ मोहब्बत की दीवार होनी चाहिए और बाकी सभी दीवारें गिरनी चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया में संगीत की भाषा एक है और उसकी कोई सरहद नहीं होती। मुझे उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच ताज़ा हवा ज़रूर चलेगी।’

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने मंदिर में गाने का न्योता कैसे स्वीकार किया, ग़ुलाम अली साहब ने कहा, ‘जहां प्यार मिले या जहां प्यार से कोई याद करे, वहां जाकर गाना बेहद ज़रूरी है। हमारा काम ही गाना गाना है, फिर चाहे वो मंदिर में हो या मस्जिद में, इससे क्या फर्क़ पड़ता है।’

ग़ुलाम अली कहते हैं, ‘हमारी इबादत मां, बहन के साथ तो है ही, वो अल्लाह़ ताला और हनुमान जी के लिए भी है। मंदिर में गाने से न मेरा मज़हब बदलेगा न महंत जी का धर्म बदलेगा, इन सबसे ऊपर है अल्लाह़ या भगवान जो हमारे साथ है।’

संकट मोचन मदिंर के महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्रा जिन्होंने इस कार्यक्रम की रूपरेख़ा तैयार की उनके अनुसार, ‘खां साहब एक बहुत बड़े फनकार हैं और बहुत ही सादगी पसंद इंसान। ये इनका बड़प्पन ही है कि ये प्राचीन हनुमान मंदिर में ठुमरी गाने को तैयार हो गए।’

प्रो मिश्रा ने आगे कहा, ‘संगीत की भाषा एक होती है, और सरहद नहीं होती इसलिए जो भी यहां आना चाहे उनका स्वागत है… हमारा कोई नगीना अगर बाहर है तो हम उसे वापिस लाने की कोशिश ज़रूर करेंगे। अगर हनुमान जी का मन हो गया है कि, वो ग़ुलाम अली के मुंह से ठुमरी सुनें तो इसमें भला मैं क्या कर सकता हूं।’

बिस्मिल्लाह ख़ां के बेटे ज़ामिन खां ने भी ग़ुलाम अली साहब का स्वागत करते हुए कहा कि वे इस ऐतिहासिक मंदिर में परफॉर्म करने जा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि संकटमोचन मंदिर का आशीर्वाद उनके साथ है।

ग़ुलाम अली ने दोनों देशों के बीच दीवार गिरने की भी उम्मीद जताते हुए कहा, ‘मैं 35 सालों से भारत आ रहा हूं और मुझे कभी ये एह़सास नहीं हुआ कि हम पाकिस्तान से हैं।’

ग़ुलाम अली मानते हैं कि, ‘संगीत की जुबां सिर्फ़ संगीत होती है। हमारा काम प्यार बांटना है। जो संगीत से जुड़े लोग हैं वो हमारे दिल में रहते हैं और जो संगीत से प्यार करते हैं हम उन्हें अपने साथ रखते हैं।’

गुलाम अली ने ये भी कहा कि, ‘दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक रिश्ते बनाए रखना मेरी लिए बोझ नहीं ज़िम्मेदारी है। ये भारत के लोगों का मेरे लिए प्यार ही है जो मुझे बार-बार यहां बुलाता है।’