नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा है कि अगर कोई पत्नी गुजाराभत्ता की मांग करती है तो उसे देने से बचा नहीं जा सकता नई दिल्ली। देश के उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा है कि अगर कोई पत्नी गुजारा भत्ता की मांग करती है तो उसे देने से बचा नहीं जा सकता। साथ ही कोर्ट ने व्यवस्था दी कि इस नियम से जुड़ी कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (सीआरपीसी) की धारा 125 तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होगी।

जस्टिस दीपक मिश्र और पीसी पंत की बेंच ने कहा, “अगर पति स्वस्थ है और इस हालत में हैं कि खुद को सपोर्ट कर सके, तो फिर उसे कानूनी तौर पर अपनी पत्नी का समर्थन करना होगा, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी गुजारा भत्ता की हकदार है और उसे बिना किसी सवाल उठाए ये दिया जाना चहिए।”

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया कि इस धारा के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता पाने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन जब तक वे दूसरी शादी नहीं कर लेती तब तक ही वे गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं। एक संविधान पीठ के पहले के आदेश का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दिए जाने वाले गुजारा भत्ता की रकम को इद्दत अवधि तक सीमित नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट के स्पष्टीकरण से तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को मदद मिलेगी, जिनके गुजारा भत्ता पाने के अधिकार को राजीव गांधी की सरकार द्वारा संसद में पारित किए गए एक कानून के चलते सीमित कर दिया गया था। इसके अलावा बेंच ने कहा, “इसमें कोई शक नहीं है कि अगर किसी व्यक्ति के पास पूरे संंसाधन हैं और वे फिर भी अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार या उसे नजरअंदाज करता है तो उस पर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत इस आदेश जारी किया जा सकता है।”