नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जज कुरियन जोसेफ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से दिए जाने वाले डिनर में जाने से इनकार कर दिया है। जस्टिस कुरियन ने एक अप्रेल को लिखी चिट्ठी में कहाकि वे गुड फ्राइडे के चलते इस डिनर में आने में असमर्थ है। इस डिनर में सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ ही उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होंगे। 

न्यायाधीश जोसफ ने पीएम को खत लिखकर कहा है कि किसी भी अहम कार्यक्रम का आयोजन धार्मिक महत्व की छुटि्टयों के दिन नहीं होना चाहिए। भारत में दीवाली, होली, ईद जैसे मौकों पर न सिर्फ छुट्टी होती है, बल्कि किसी भी महत्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रम का आयोजन भी नहीं किया जाता है। गुड फ्राइडे का हमारे लिए बहुत बड़ा धार्मिक महत्त्व है। मुझे पता है कि अब चीफ जस्टिस कांफ्रेंस के कार्यक्रम को नहीं बदला जा सकता। आपसे आग्रह है कि भविष्य में सरकारी कार्यक्रम तय करते समय सभी धमोंü के लिए एक जैसे सम्मान की बात का ध्यान रखें।”

अपने पत्र में जस्टिस कुरियन ने भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि का भी जिक्र किया। उन्होंने लिखाकि, ईरान में भेदभाव और अत्याचार होने के बाद पारसी भारत आ गए। भारत में पारसियों की संख्या पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसका कारण शायद उस समय के हिंदू राजा रहे जिन्होंने न केवल उन्हें बचाया बल्कि रक्षा भी की। भारत की धर्मनिरपेक्षता सर्व धर्म समभाव पर टिकी है। 

इससे पहले छट्टी के दिन इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन को लेकर न्यायाधीश जोसफ पहले भी एतराज जता चुके हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू को चिटी भेजकर गुड फ्राइडे के दिन मुख्य न्यायाधीशों की कांफ्रेंस बुलाने पर विरोध जताया था। जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कांफ्रेंस के समय पर सवाल उठाया और कहा था कि, इस तरह के कार्यक्रम दिवाली, दशहरा, होली और ईद पर आयोजित नहीं किए जाते। इस पत्र पर मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि निजी हितों के बजाय संस्थागत हित्तों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के इस तरह से विरोध जताने का यह पहला मौका है।