वाराणसी। वाराणसी संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव जीतने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी के सभी वर्ग के लोगों का साथ मिला था। इसमें बुनकर भी शामिल थे। लेकिन मोदी सरकार के नौ महीने पूरे होने के बावजूद बनारस के बुनकरों का वही हाल है और उन्हें लगने लगा है कि चुनाव से पहले दिखाए गए सपने, सपने ही रह जाएंगे।

प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के बुनकरों व मशहूर बनारसी साड़ी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का वादा किया था, लेकिन प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठने के नौ महीने बीत जाने के बाद भी बनारस के बुनकरों को ऐसा लग रहा है कि चुनाव के दौरान जो ख्वाब दिखाए गए थे, वे अभी भी अधूरे ही हैं।

चुनाव जीतने के बाद बीते नवंबर में पहली बार प्रधानमंत्री बनारस पहुंचे और इस दौरान वह सबसे पहले बुनकरों की पंचायत में ही गए। चुनावी वादे को पूरा करने के लिए उन्होंने 200 करोड़ रुपये की लागत वाले ‘ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर’ की नींव रखी, साथ ही हैंडलूम सेंटर का उद्घाटन कर नई उम्मीद जगाई।

चुनाव के दौरान ही केंद्रीय कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार ने भी काफी वादे किए थे लेकिन नौ महीने बीत जाने के बाद एक भी योजना पर काम शुरू नहीं हुआ है। बुनकरों का तो यह भी आरोप है कि पहले जो सुविधाएं मिल रही थीं अब वह भी बंद हो गई हैं। बनारस के बुनकर तंजीम बावनी के हाजी निजामुद्दीन कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुनकरों को सपने दिखाकर ठगने का काम ही किया है। पिछले नौ महीने में बुनकरों के हित वाला एक भी काम सरकार ने नहीं किया है।

प्रधानमंत्री ने जिस फैसिलिटेशन सेंटर की आधारशिला रखी थी, उसका निर्माण शुरू होना तो दूर अभी तक आर्किटेक्ट का काम भी पूरा नहीं हुआ है। कपड़ा मंत्रालय के एक सहायक निदेशक ने कहा कि आर्किटेक्ट फाइनल होने के बाद डिजाइन और उसके अनुसार निर्माण का प्लान बनाने में करीब छह से आठ महीने लगेंगे।

बुनकर तंजीम बावनी के हाजी मुख्तार अहमद भी मानते हैं कि पिछले नौ महीनों में बुनकरों के हित वाला कोई काम नहीं हुआ है। अहमद ने कहा कि मोदी ने काशी के बुनकरों को सिर्फ सपने दिखाए थे। बुनकरों व बनारसी साड़ी को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने का दावा कर रहे थे लेकिन यहां तो बनुकरों की हालत पतली होती जा रही है।

कपड़ा मंत्रालय की ओर से बुनकरों के लिए 80 करोड़ रुपये की लागत से मेगा क्लस्टर व 11 कॉमन फैसिलिटी सेंटर स्थापित करने का काम अभी तक शुरू नहीं हो सका है। हथकरघा के सहायक निदेशक एन. धवन के मुताबिक जमीन न मिलने की वजह से यह मामला लटका हुआ है। काशी के एक बुनकर फारुख अंसारी कहते हैं कि पहले जो कुछ मिल रहा था, वही मिलता रहता तो एक बात होती। यहां तो पहले वाली सुविधाएं भी काफी कम हो गई हैं।