लखनऊ। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की राज्य इकाई ने हाशिमपुरा नरसंहार पर 28 सालों के लंबे इंतजार के बाद आये कोर्ट के फैसले को न्याय का अन्याय कहा है।

पार्टी के राज्य सचिव रामजी राय ने कहा कि सामूहिक हत्याकांड के सभी अभियुक्तों के बरी हो जाने पर पुलिस, जांच एजेंसियां और सरकार अब कठघरे में हैं। उन्होंने कहा कि यह सर्वविदित तथ्य है कि 1987 में मेरठ में अल्पसंख्यक समुदाय के 42 लोगों की प्रांतीय सशस्त्र रक्षा वाहिनी (पीएसी) ने हत्या कर लाशें नहर में फेंक दी थीं। लेकिन अभियुक्तों का दोषमुक्त होना यह दिखाता है कि ये संस्थाएं न्याय दिलाने के लिए पुख्ता सबूत इकट्ठा करने की जगह पुलिस का मनोबल न गिरने देने के नाम पर सबूतों के साथ खिलवाड़ करने में लगी रहीं।

उन्होंने कहा कि 28 सालों तक चली लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद भी न्याय नहीं मिला। मूल प्रश्न अब भी यही है कि उन 42 लोगों की हत्या किसने की। उन्होंने कहा ऐसे मामलों में खुद न्यायपालिका को संज्ञान लेना चाहिए और दोषियों की शिनाख्त कर दंडित करना चाहिए।

माले नेता ने कहा कि हाशिमपुरा कांड पर आये फैसले से पहले बिहार के बथानी टोला, लक्ष्मणपुर बाथे आदि चर्चित दलित नरसंहार कांडों के दोषी भी लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद कोर्ट से बरी हो गये और सजा किसी को भी नहीं मिली। इन सभी हत्याकांडो के हत्यारे आज भी कानून की पकड़ से बाहर हैं।

माले राज्य सचिव ने कहा कि यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। लोगों का न्यायप्रणाली पर से भरोसा टूटेगा। इसकी जिम्मेदारी न्यायपालिका को भी लेनी होगी।

उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि वह हाशिमपुरा कांड में न्याय दिलाने के लिए ऊपरी अदालत में जाये और हर हाल में दोषियों को सजा दिलाना सुनिश्चित करे।