लखनऊ: बख्शी का तालाब, लखनऊ स्थित चन्द्रभानु गुप्त कृषि महाविद्यालय परिसर में चल रहे तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के दूसरे दिन प्रथम सत्र में वरिष्ठ समाजवादी नेता व काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने प्रशिक्षणार्थियों को स्वतंत्रता संग्राम में समाजवादियों की भूमिका और योगदान के बारे में बतलाया। श्री यादव ने कहा कि भारत में समाजवादी आन्दोलन व स्वतंत्रता संग्राम साथ-साथ एक दूसरे के पूरक और पर्याय के रूप में आगे बढ़े हैं। चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरू जैसे क्रांतिकारी समाजवादियों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट आर्मी बनाकर ब्रिटानियां हुकूमत को सीधी चुनौती दी। अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान सभी बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद डा० राम मनोहर लोहिया ने समाजवादियों से मिलकर आजाद दस्ता बनाया और भूमिगत होकर स्वतंत्रता संग्राम की की धार को तेज किया। उन्होंने मैक्स हरकोर्ट के शोध और तत्कालीन वायसराय लिनलिथगो की रिपोर्टों को उद्धरित करते हुए कहा कि यदि समाजवादी न होते तो 42 की क्रांति सफल न होती। भारत की स्वतंत्रता के बाद भी समाजवादियों ने गोवा की आजादी की लड़ाई लड़ी और गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराकर ही दम लिया। सभी महान नेताओं ने चाहे वो गांधी जी हों या सुभाष चन्द्र बोस, समाजवाद की खुली वकालत की। नई पीढ़ी को समाजवादियों की संघर्ष गाथा से अवगत कराने के लिए नए सिरे से विमर्श छेड़ना होगा। दुर्भाग्य है कि स्वतंत्रता संग्राम में समाजवादियों की भूमिका पर उतना लिखा पढ़ा नहीं गया जितना अपेक्षित था। अपने 45 मिनट के उद्बोधन में समाजवादी आन्दोलन और स्वतंत्रता संग्राम के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला। समाजवादी पार्टी के नीतिगत निर्णयों में निहित सैद्धांतिक पक्ष से सभी प्रतिभागियों को अवगत कराया। बढ़ती सामाजिक-आर्थिक विषमता को केवल समाजवादी अवधारणा के आधार पर ही रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि लोहिया द्वारा प्रतिपादित “सप्तक्रांति” विकेन्द्रीकरण, श्रम प्रधान उद्योगों की प्राथमिकता जैसी समाजवादी कार्य योजनाओं को ठीक से लागू किया गया होता तो देश समग्र मानवीय विकास में 135 देशों से पीछे न होता और भारत अपने पूरे बजट का 21 फीसदी ब्याज में न चुका रहा होता।