नई दिल्ली : पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने शनिवार को कहा कि दुर्दांत अलगाववादी मसर्रत आलम की रिहाई में ‘कुछ भी गलत नहीं’ है, उसने कभी बंदूक नहीं उठायी और वह वर्ष 2010 की पथराव वाली अशांति की उपज है जिसकी उसने अगुवाई की थी।

उन्होंने कहा कि उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुवाई वाली जम्मू कश्मीर सरकार इस अलगाववादी को रिहा कर बस उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन कर रही थी।

पिछले सप्ताह आलम की रिहाई होने से संसद में काफी हंगामा हुआ था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहना पड़ा था कि यह अस्वीकार्य है।

एक कार्यक्रम में जब उनसे पूछा गया कि क्या वह मानती हैं कि आलम की रिहाई गलत है, उन्होंने कहा ‘इसमें कुछ भी गलत नहीं है।’ उसकी रिहाई से पीडीपी का अपने गठबंधन सहयोगी भाजपा के साथ संबंधों में तनाव आ गया था।

महबूबा ने आश्चर्य के साथ कहा, ‘यदि उच्चतम न्यायालय का निर्देश पालन करना गलत है तब हम क्या करें। जब कश्मीर की बात आती है तो आप खुद अपने उच्चतम न्यायालय (के आदेश) को उलट देने की कोशिश कर रहे हैं। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं।’ वह एक अदालत के इस निर्देश का जिक्र कर रही थीं कि यदि आलम को हिरासत में रखने के लिए कोई नया आधार हो तो ही उसे और हिरासत में रखा जा सकता है।

पीडीपी-भाजपा गठबंधन को जनादेश पर आधारित बताने वालीं महबूबा ने कहा कि अदालत के फैसलों को लेकर दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘आप सूची में 28 वां नंबर उठा लेते हैं और अफजल गुरू को फांसी पर चढ़ा देते हैं और कहते हैं कि यह उच्चतम न्यायालय का फैसला है। लेकिन जब वही उच्चतम न्यायालय कहता है कि आलम को रिहा करो जो बिना आरोप के हिरासत में रखा गया है तो आप उस पर सवाल खड़ा करते हैं।’

उन्होंने कहा, ‘मेरी इच्छा है कि जब मसर्रत आलम को रिहा किया गया तो लोगों को इस बात पर बहस करनी चाहिए थी कि कैसे उच्चतम न्यायालय इस सीमा तक पहुंचा…. कि उसने एक ऐसा फैसला दे दिया जो देश में सुरक्षा को लेकर दृष्टिकोण से बिल्कुल विपरीत है।’

पीडीपी अध्यक्ष ने कहा, ‘मसर्रत आलम शायद उसे नहीं समझ पाए लेकिन मैं आश्वस्त है कि वह अंत:मन से सोचेगा तो या उसके इर्द-गिर्द के लोग जरूरत यह कहते होंगे, यही उच्चतम न्यायालय है।’