प्रोविडेंट फंड कानून में बदलाव की तैयारी

नई दिल्ली। नौकरी पेशा लोगों को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचाने के लिए सरकार कर्मचारी भविष्य निधी (ईपीएफ) से संबंधित कानून में भारी बदलाव करने के बारे में विचार कर रही है। एंप्लॉयीज की ओर से 12 फीसदी अनिवार्य कॉन्ट्रिब्यूशन को समाप्त करने का सुझाव दिया गया है, लेकिन पीएफ पर होने वाले कंपनी के खर्च को सरकार बरकरार रखने के पक्ष में है। 

अगर ये नए नियम लागू हुए तो बेसिक सैलरी के साथ सभी भत्‍तों को मिलाकर ईपीएफ काटा जाएगा, जिससे टेक होम सैलरी कम हो जाएगी। सरकार ने नए नियमों का ड्राफ्ट बनाकर अंदरूनी तौर पर उसे सर्कुलेट भी कर लिया है। कुछ साल पहले इन नए नियमों का ड्राफ्ट बनाया गया था, लेकिन इंडस्‍ट्री चैंबरों के विरोध के बाद इन नियमों को लागू नहीं किया गया था क्‍योंकि इससे कंपनियों पर आर्थिक बोझ ज्‍यादा बढ़ रहा था। सरकार उन कंपनियों को भी ईपीएफ के दायरे में लाने के बारे में विचार कर रही है जहां कर्मचारियों की संख्‍या 20 से कम है। अभी केबल वहीं कंपनियां इसके दायरे में आती हैं, जिनके कर्मचारियों की संख्‍या कम-से-कम 20 है।

विधि मंत्रालय ईपीएफ के दायरे को सिर्फ बेसिक सैलरी से हटाकर इसमें हर तरह के भत्ते (सैलरी पैकेज) को भी शामिल करने के पक्ष में दिख रहा है। सभी तरह के भत्तों में कर्मचारी को अधिकृत छुट्टी, हड़ताल और छंटनी के लिए भुगतान की जाने वाली राशि भी शामिल होगी। इसके अलावा उन अन्य भत्तों को भी शामिल किया जाएगा, जो कंपनी कर्मचारी को दो महीने से कम के अंतराल पर भुगतान करती है। अभी जिस बदलाव के बारे में विचार किया जा रहा है इसका प्रस्ताव करीब दो साल पहले ही आ चुका है। लेकिन उस समय इंडस्ट्री चेंबर्स ने कंपनियों के विरोध के चलते इसको वापस ले लिया गया था। 

सरकार इस प्रस्ताव को फिर से लाने की तैयारी कर रही है। भले ही इसके चलते कर्मचारी की जेब में हर महीने सैलरी के रूप में कम रकम आएगी लेकिन प्रोविडेंट फंड में इससे ज्यादा रकम ट्रांसफर होगी। कर्मचारियो को ज्यादा सैलरी मिल सके। इसके लिए कुछ इंडस्ट्री सेगमेंट या कंपनियों में कर्मचारी को कम कॉन्ट्रिब्यूशन करने का प्रावधान बनाया जाएगा। इस संबंध में सरकार द्वारा अधिसूचना जारी की जाएगी। इसके अलावा अपीलीय ट्राइब्यूनल को मजबूत करने, धोखाधड़ी करने वाली कंपनियों के मामले में रिकवरी को बढ़ाने और जुर्माने की राशि को बढ़ाने का भी प्रावधान है।