मलेरिया की जिस दवा (हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन) को लेकर भारत, अमेरिका और जर्मनी सहित कई देशों में हंगामा हो रहा है, वो दवा कोरोना वायरस का पुख्ता इलाज नहीं है इस दवा के अधिक सेवन से आपको दिल की धड़कन और ब्लड ग्लूकोज लेवल कम होना जैसी गंभीर समस्याओं का सामना जरूर करना पड़ सकता है। यह बात एक कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आई है।

डेकन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि क्लोरोक्वाइन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और एजिथ्रोमाइसिन का उपयोग कोरोना वायरस के उपचार और रोकथाम के लिए किया जा रहा है। इन दवाओं के सेवन से अनियमित दिल की धड़कन और ब्लड ग्लूकोज लेवल कम होना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार, इन दवाओं के दुष्प्रभावों में अनियमित दिल की धड़कन, रक्त में ग्लूकोज का स्तर कम होना के अलावा न्यूरोपैसाइट्रिक प्रभाव जैसे किबेचैनी, भ्रम, मतिभ्रम और व्यामोह भी शामिल हैं। क्लोरोक्वीन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के बारे में वैज्ञानिकों ने कहा कि इन दवाओं के ओवरडोज़ से कोमा और कार्डियक अरेस्ट का भी खतरा है

स्वास्थ्य मंत्री डा हर्षवर्धन ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के सीमित इस्तेमाल की जरूरत पर बल देते हुये निर्देश दिया है कि सिर्फ चिकित्सकों के परामर्श पर ही यह दवा मरीजों को दी जाये।

मंत्रालय द्वारा जारी बयान के अनुसार जीओएम ने हृदय रोगों से पीड़ित मरीजों के लिये यह दवा नुकसानदायक साबित होने के खतरों को सार्वजनिक तौर पर अवगत कराने का भी निर्देश दिया है।

उल्लेखनीय है कि भारत में मलेरिया सहित अन्य वायरल जनित बुखार में इस्तेमाल होने वाली इस दवा के प्रयोग को कोरोना संक्रमण के मद्देनजर सीमित कर दिया गया है। कोरोना वायरस के संक्रमण के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के कारगर होने के बारे में अब तक पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होने के कारण स्वास्थ्य मंत्रालय लोगों को ऐहतियात के तौर पर इस दवा का सेवन नहीं करने की लगातार अपील कर रहा है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने भी यह दवा सिर्फ चिकित्साकर्मियों और संक्रमण के संदिग्ध मरीजों को ही देने की अनुशंसा की है।

आईसीएमआर बार बार यह स्पष्ट कर चुका है कि यह दवा सभी के इस्तेमाल के लिये नहीं है। यह दवा सिर्फ कोरोना वायरस के इलाज में लगे चिकित्साकर्मियों और संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वाले संदिग्ध व्यक्तियों को ही दी जा रही है।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न होने वाली किसी भी संभावित आपात स्थिति में इस दवा की जरूरत को देखते हुये इसे ‘आवश्यक दवाओं’ की श्रेणी में शामिल कर इसकी बिक्री और वितरण को सीमित कर दिया था।

इस दवाई की मांग तेजी से बढ़ गई है, हालांकि अभी यह साबित भी नहीं हुआ है कि वायरस पीड़ित के इलाज में यह कारगर है भी या नहीं। हालांकि कोरोना वायरस के मरीज उपचार में दवा की प्रभावशीलता के बड़े पैमाने पर नैदानिक परीक्षण नहीं हुए हैं।

दवा विक्रेताओं का कहना है कि वे इसकी कमी का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले तक यह दवा मुख्य रूप से मलेरिया के रोगियों और गठिया के दर्द की शिकायत करने वालों के बीच ही मशहूर थी।

हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन 21 मार्च को ट्रंप के एक ट्वीट के बाद चर्चा में आई। इसके कुछ ही दिन बाद भारत समेत कई देशों ने कोरोना वायरस के इलाज के दौरान आपातकालीन परिस्थितियों और केवल कुछ लोगों पर ही इसके इस्तेमाल को मंजूरी दे दी।

हालांकि व्हाइट के खुद के ही संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फॉसी ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि इस दवा की प्रभावशीलता केवल ''काल्पनिक'' है और इसके असर का पता लगाने के लिये दवा के नैदानिक परीक्षणों की जरूरत है।