देश में गरीबों की संख्या का पता लगाने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर सर्वे शुरू किया है। इस सर्वे के जरिए देश में गरीबी का आंकड़ा, जरूरी सुविधाओं के अभाव और सरकारी योजनाओं की पहुंच के बारे में पता लगाया जाएगा। गरीबी रेखा के आइडिया को खारिज किए जाने के बाद यह सर्वे किया जा रहा है। बता दें कि 2014 में ही नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में सी. रंगराज कमिटी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था, जिसमें गरीबों की संख्या तेंडुलकर कमिटी के मुकाबले 10 करोड़ ज्यादा बताई गई थी।

सूत्रों के हवाले से इकनॉमिक टाइम्सने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सांख्यिकी मंत्रालय ने फील्ड वर्क शुरू किया है, जबकि नीति आयोग सरकारी योजनाओं को लेकर राज्यों और देश की परफॉर्मेंस का आकलन कर रहा है। बता दें कि भारत को वर्ल्ड बैंक ने लोअर मिडिल आय वाले देशों में शामिल किया। वहीं पड़ोसी देश चीन को अपर मिडिल इनकम देश माना है।

सरकार अब गरीबी के पैमाने को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मुताबिक तय करेगी। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र डिवेलपमेंट प्रोग्राम के गरीबी के इंडेक्स में सिर्फ आय को ही पैमाना नहीं माना जाता। इस इंडेक्स को स्वास्थ्य, शिक्षा और जीने के स्तर के आधार पर तय किया जाता है। इसके लिए 10 संकेतकों को चुना गया है, जैसे स्वास्थ्य (शिशु मृत्यु दर), शिक्षा, पानी, शौचालय, बिजली, संपत्ति, खाने बनाने का ईंधन, घर की छत और संपत्ति शामिल हैं।

अब यदि सरकार के सर्वे में किसी व्यक्ति के पास इन चीजों का अभाव नहीं पाया जाता है तो उसे गरीब नहीं माना जाएगा। बता दें कि तेंडुलकर कमिटी ने देश में गरीबों की संख्या 26.9 करोड़ मानी है, जबकि रंगराजन समिति के मुताबिक देश में 36.3 करोड़ लोग यानी देश की कुल आबादी के 29 फीसदी लोग गरीब हैं।