नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग (ईसी) ने शुक्रवार को दागी नेताओं के चुनाव लड़ने को लेकर कहा है कि चुनाव में उतरे उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड पर जल्द मौजूदा नियम में बदलाव किए जाएंगे। यह बात आयोग ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा तल्ख टिप्पणी और आदेश दिए जाने के बाद कही है। चुनाव आयोग ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए मतदाताओं की जानकारी के लिए उम्मीदवारों और संबंधित राजनीतिक दलों के सदस्यों पर दर्ज आपराधिक मामलों के प्रचार को सुनिश्चित करने के लिए 10 अक्टूबर 2018 के निर्देशों में बदलाव करेगा।

दरअसल, अक्टूबर 2018 में चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए आदेश दिया था कि वो अपने ऊपर दर्ज अपराधिक मामले को चुनाव के दौरान कम से कम तीन बार टेलीविजन और अखबारों में विज्ञापन करें। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया था कि उम्मीदवारों को अपने आपराधिक मामले को टीवी और अखबारों में विज्ञापन देने का खर्च, स्वंय वहन करना होगा क्योंकि यह चुनावी खर्च की श्रेणी में आता है।

राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के खिलाफ दायर एक याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि सभी राजनीतिक दल दागी उम्मीदवारों को चुनाव का टिकट दिए जाने की वजह बताएं। जस्टिस रोहिंटन नरीमन और एस रविंद्र भट की बेंच ने इसके साथ ही यह भी कहा था कि सभी पार्टियों को अपने उम्मीदवारों का क्रिमिनल रिकॉर्ड वेबसाइट पर अपलोड करना होगा।

कोर्ट ने आगाह किया कि अगर इस आदेश का पालन नहीं किया गया तो अवमानना की कार्रवाई की जा सकती है। अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति पार्टियों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने का कारण अपनी वेबसाइट, अखबार, न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर प्रचारित करने का आदेश दिया।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-8 दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है, लेकिन ऐसे नेता जिन पर सिर्फ मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। भले ही उनके ऊपर लगा आरोप गंभीर क्यों न हो।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) में यह प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किए जाने की तारीख से छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।