नई दिल्ली: निर्भया मामले में दोषियों के कानूनी दांवपेच के बीच फांसी में हो रही देरी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक मामले में अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि मौत की सजा का नतीजे तक पहुंचना बहुत अहम है। कैदियों में यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि मौत की सजा 'ओपन एंडेड' है और कैदी हर समय इसको चुनौती दे सकते हैं। वहीं, गुरुवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के बाद दोषियों को सात दिन में फांसी के लिए गाइडलाइन तय करने की मांग वाली याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी उस समय आई है जब 2012 के निर्भया गैंगरेप-मर्डर मामले में मौत की सजा दिए जाने के बाद चारों दोषी कानूनी दांवपेच के बीच एक के बाद याचिका दायर कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि यह कानून के हिसाब से होना चाहिए, जजों का समाज और पीड़ितों के प्रति भी कर्तव्य है कि वे न्याय करें।

चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस एस. ए. नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने यह टिप्पणी मौत की सजा पाए एक प्रेमी जोड़े की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान की। यह मामला यूपी में 2008 में एक ही परिवार के 7 लोगों की हत्या से जुड़ा है। परिवार की एक युवती का प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता-पिता, 2 भाईयों और भाभियों के साथ-साथ अपने 10 महीने के भतीजे की हत्या कर दी थी। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रेमी जोड़े को मौत की सजा पर मुहर लगाई थी। इस पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, 'कोई हर चीज के लिए हमेशा नहीं लड़ता रह सकता। सजा-ए-मौत का अंजाम बहुत महत्वपूर्ण है और इसकी सजा पाए कैदियों को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि फांसी की सजा ओपन एंडेड है और वे इस पर हर समय सवाल उठा सकते हैं।