नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में संशोधित नागरिकता कानून-2019 (सीएए) को लेकर 140 से ज्यादा पक्ष और विपक्ष में याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट में कल से सुनवाई शुरू होगी। गृह मंत्रालय की ओर से इसे लागू करने के लिए जारी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब तलब किया।

उच्चतम न्यायालय संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को परखने का आग्रह करने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई करेगा। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर तथा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्र को विभिन्न याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था और पीठ संभवत: 140 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

इन याचिकाओं में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) और कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिकाएं भी शामिल हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को मंजूरी दी थी जिससे यह कानून बन गया था।

कोर्ट अब बुधवार को इसपर सुनवाई करेगा। चीफ जस्टिस बोबडे, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट में 140 से अधिक याचिकाएं हैं जिनमें नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती दी गई है और कोर्ट उनपर नोटिस भी जारी कर चुका है। उन याचिकाओं पर 22 जनवरी को सुनवाई होनी है।

सोमवार को दाखिल की गई इस याचिका में कहा गया है कि सीएए धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है। इसके अलावा याचिका में एनपीआर शुरू करने की 31 जुलाई 2019 की अधिसूचना को भी चुनौती दी गई है और उसे रद करने की मांग की गई है।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 18 दिसंबर को सीएए की संवैधानिकता की समीक्षा करने का फैसला किया था जबकि इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। संशोधित कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक आए हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध, जैन और ईसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है।

नयी याचिका में गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा गया है,‘‘ सीएए की धाराएं 2,3,5,6 संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद-19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करती हैं।’’

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि गृह मंत्रालय की अधिसूचना और सीएए संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है और धर्मनिरपेक्षता, समानता, जीवन की गरिमा और बहुलवाद को कमतर कर संविधान के मूल ढांचे पर चोट करता है।

याचिका में आरोप लगाया है कि सीएए और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का उल्लेख नागरिकता कानून 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय परिचय पत्र का वितरण)-2003 की धारा का संबंध है। हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी,जैन और ईसाई समुदाय के लोगों को ‘‘ धार्मिक उत्पीड़न की कल्पना ’’के आधार पर नागरिकता मिल रही है।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया, ‘‘ सीएए और नियमों से लाखों भारतीय नागरिकों (मुस्लिमों) को संदिग्ध नागरिक घोषित किए जाने का खतरा है। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने सीएए के खिलाफ अखिल भारतीय मुस्लिम लीग और कांग्रेस नेता जयराम रमेश सहित याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।