'धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यक' लिखने से भी चल सकता है काम

नई दिल्ली: जानें माने संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने संयुक्त संसदीय समति को दो साल पहले ही सचेत किया था कि नागरिकता संशोधन बिल में किसी धर्म की बजाए सिर्फ धार्मिक प्रताड़ना के शिकार अल्पसंख्यक लिखा जाए।

इंडियन एक्सप्रेसकी रिपोर्ट के मुताबिक सुभाष कश्यप ने जेपीसी के सामने 2016 में कहा था कि 'धार्मिक प्रताड़ना के शिकार अल्पसंख्यक' में सभी शामिल हो जाएंगे जिन्हें नागरिकता देना उद्देश्य है। सुभाष कश्यप ने बताया कि उन्होंने सलाह दी थी कि बिना किसी समुदाय का नाम लिखे भी उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है।

सुभाष कश्यप सातवीं, आठवीं और नवीं लोकसभा में महासचिव रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि दोनों सदनों ने सीएबी को पारित कर दिया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भी हो चुके हैं। इसे 'कोर्ट ऑफ लॉ' या संसद में संशोधन के जरिए ही सुधारा जा सकता है।

कश्यप ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रही हिंसा की आलोचना करते हुए कहा कि यह गैरकानूनी है। प्रदर्शनकारियों को यह याद रखना चाहिए कि उसी संविधान ने संसद को सर्वोच्च माना है।

आपको बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून के अनुसार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के जो सदस्य 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हैं और जिन्हें अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है, उन्हें गैर कानूनी अप्रवासी नहीं माना जाएगा, बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी।