लिखा, ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ती है

नई दिल्ली: चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने लेख के जरिए केंद्र सरकार पर निशाना साधा है और कहा है कि उन्हें ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ रही है। एक अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने आलेख में लवासा ने लिखा है कि जीवन में हर चीज के लिए ईमानदारी की एक कीमत होती है। भले उस ईमानदारी की कीमत सीधे तौर पर या किसी तरह की क्षति के जरिए चुकानी पड़ती हो लेकिन ईमानदार कार्रवाई का खामियाजा भुगतना पड़ता है।

चुनाव आयुक्त ने लिखा है कि उन लोगों से किसी तरह की उम्मीद करना नासमझी है, जिनका विरोध ईमानदारी से विनम्रतापूर्वक भी किया गया है। उन्होंने लिखा कि ईमानदार लोगों को अकेले ही उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। कभी-कभी तो उसे अलग-थलग रहने को मजबूर होना पड़ता है।

लवासा ने लिखा है कि यदि कोई लोक सेवक सार्वजनिक हित से समझौता किए बिना किसी व्यक्ति की वास्तविक चिंताओं को समायोजित करने का फैसला लेता है, तो इसे बेईमानी नहीं कहा जा सकता है। ऐसी व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने के लिए हस्तक्षेप को भी पक्ष में नहीं माना जा सकता है। उन्होंने लिखा है कि वरिष्ठ स्तर पर विवेक का इस्तेमाल आवश्यक हो जाता है क्योंकि कभी-कभी नियमों की व्याख्या के माध्यम से लोगों को उकसाना असंभव हो जाता है और ऐसे में हठी होकर निपटना पड़ता है।

उन्होंने लिखा है कि एक ईमानदार व्यक्ति की अनिवार्य विशेषता उसका सच्चा होना ही है। उसकी हर कार्रवाई उसके अंतरतम की आवाज पर आधारित होता है जो उसे सही और गलत के बीच के अंतर को तय करने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। यह आमतौर पर प्रचलित कानून, उसके विधान और नैतिकता से प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि बावजूद इसके शायद ही कभी परिणामों के प्रति सचेत विश्लेषण होता है। उन्होंने कहा कि ईमानदारी को कुछ लोग मूर्खता, अकर्मण्यता या अशांति कहे ते हैं लेकिन यही सफल सिविल सेवकों का “कवच” है।

बता दें कि अशोक लवासा ने लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष पर लगे आचारसंहिता उल्लंघन मामले में क्लीनचिट देने का विरोध किया था। उसके कुछ महीनों बाद उनकी पत्नी, बेटे और बहन के खिलाफ आयकर अधिकारियों ने आय से अधिक संपत्ति की जांच की थी। अभी कुछ दिनों पहले ही इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने लवासा की पत्नी के नाम एक प्रॉपर्टी की बिक्री में स्टाम्प ड्यूटी चोरी के आरोप की जांच के लिए हरियाणा सरकार को लिखा है। लवासा परिवार ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए परेशान और बदनाम करने की नीति से उठाया गया कदम बताया है।