नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों से पास होने के बाद से ही देशभर में इसका विरोध तेज हो गया है। कई जगह यह विरोध हिंसक रूप भी ले रहा है। राज्यसभा से इस विधेयक (सीएबी) के पारित होने के बाद असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा समेत पूर्वोत्तर भारत में बड़े स्तर पर प्रदर्शन शुरू हो गए थे, प्रदर्शनों को देखते हुए राज्य सरकारों ने इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगा दी थी। पूर्वोत्तर के कुछ शहरों के बाद अब उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर और अलीगढ़ में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। डिजीटल इंडिया के समय में ना सिर्फ नागरिकता कानून को लेकर ही बल्कि इससे पहले जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने और एनआरसी जैसे मुद्दों को लेकर भी इंटरनेट सेवाओं को कुछ समय के लिए बंद करना पड़ा था।

असम में नागरिकता संशोधन बिल के हिंसक विरोध के बाद 16 दिसंबर तक इंटरनेट सेवाओं और एसएमएस सेवाओं को रोक दिया गया था और स्थितियों को काबू में करने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया था ताकि प्रदर्शनकारी अपना संदेश न फैला सकें और विरोध की चिंगारी अन्य राज्यों में न भड़क पाए।

त्रिपुरा में भी नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के मद्देनजर 10 दिसंबर यानि मंगलवार दोपहर दो बजे से 48 घंटों के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थी। साथ ही, सभी मोबाइल सेवा प्रदाताओं को एसएमएस संदेशों पर भी पाबंदी लगाने के लिए आधिकारिक निर्देश दिए गए थे। यह कदम लोकसभा में बिल के पारित होने के तुरंत बाद उठाया गया था।

दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शुरू हुआ हिंसक प्रदर्शन पूर्वोत्तर राज्यों के बाद यूपी तक जा पहुंचा। यूपी के मऊ और अलीगढ़ में बढ़ते हिंसक प्रदर्शन के बाद धारा 144 लगानी पड़ी और मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को भी बंद किया गया।

इससे पहले पश्चिम बंगाल के हावड़ा में मोबाइल इंटरनेट पर रोक लगाने की खबर आई थी। यूपी और पश्चिम बंगाल में सरकार को ऐसा इसलिए करना पड़ा, क्योंकि सोशल मीडिया के जरिए अफवाहें फैलाई जा रही थीं।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन पर लिए गए फैसले के मद्देनजर राज्य में धारा 144 लागू करने के साथ ही इंटरनेट सेवाएं बेमियादी तौर पर बंद कर दी गई थीं। मोबाइल इंटरनेट, वायरलाइन या लैंडलाइन सर्विस के साथ ही वायर ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाएं स्थगित की गई थीं।

सितंबर के महीने में सेना की गोलीबारी में दो आतंकियों के मारे जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के शोपियां में जब बड़े पैमाने पर सेना ने सर्च ऑपरेशन चलाया था, तब शोपियां में 27 जुलाई को इंटरनेट शटडाउन किया गया था। इससे पहले, अनंतनाग में सुरक्षा बलों के सर्च ऑपरेशन के चलते अनंतनाग जिले में इंटरनेट शटडाउन हुआ था। इसके एक दिन पहले, ऐसी खबरें आई थीं कि बारामूला जिले के सोपोर गांव के आसपास छुपे आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच क्रॉस फायरिंग के चलते वहां इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं।

बीती 10 जुलाई को दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, पुलवामा, कुलगाम और शोपियां जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं ठप कर दी गई थीं। असल में, आतंकी बुरहान वानी की तीसरी बरसी के दिन के चलते सुरक्षात्मक नजरिए से ऐसा किया गया था।

हाल ही में सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएलएफसी) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल (2019 में) भारत में अब तक इंटरनेट शटडाउन के कुल 93 मामले सामने आ चुके हैं। वहीं, फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने में भारत दुनिया में सबसे आगे है।

एसएलएफसी की 'लिविंग इन डिजिटल डार्कनेस' नाम की इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में इंटरनेट सेवा बंद करने के कुल 134 मामले सामने आए थे जो कि दुनिया में सबसे अधिक हैं। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में अगस्त से लेकर नवंबर तक लगभग 133 दिन तक इंटरनेट सेवा बंद रही थी जो विश्व रिकॉर्ड है। जम्मू कश्मीर के अभी भी कई हिस्सों में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। वहीं, अयोध्या मामले में फैसला आने के बाद भी देश के कई हिस्सों में इंटरनेट बंद किए गए थे।

इंटरनेट शटडाउन के मामले में भारत के बाद दूसरा स्थान पाकिस्तान का है। फोर्ब्स की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में पाकिस्तान में इंटरनेट शटडाउन के सिर्फ 19 मामले ही सामने आए। वहीं दूसरे पड़ोसी देश बांग्लादेश में सिर्फ 5 बार इंटरनेट शटडाउन हुआ। भारत और पाकिस्तान के बाद जिन देशों में इंटरनेट बंद किए जाने के सबसे अधिक मामले सामने आए, उनमें इराक (8), सीरिया (8) और तुर्की (7) प्रमुख हैं।

पिछले साल 2018 में 65 बार इंटरनेट शटडाउन हुआ था। उससे पहले, 2017 में राज्य में 32 बार, 2016 में 10 और 2015 व 14 में 5 बार मोबाइल इंटरनेट सर्विस बंद या स्थगित किए जाने का रिकॉर्ड दिखता है यानी पिछले पांच सालों में यह लगातार बढ़ रहा है।