नई दिल्ली: देश की मोदी सरकार घरेलू उपभोग की खपत पर 2017-18 के आंकड़े जारी नहीं करेगी। सरकार ने इसके पीछे आंकड़ों की गुणवत्ता में कमी का तर्क दिया है। इससे पहले “बिजनस स्टैंडर्ड” ने अपनी एक रिपोर्ट में ‘नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस’ के दस्तावेजों के हवाले से बताया था कि बीते 4 दशकों में पहली बार उपभोक्ता खर्च (Consumer Expenditure) में गिरावट देखी जा रही है। रिपोर्ट में इसके पीछे ग्रामीण उपभोक्ताओं की डिमांड में कमी को बड़ी वजह बताई गई।

सर्वे का हवाला देते हुए न्यूज रिपोर्ट में कहा गया है किसी व्यक्ति विशेष द्वारा 2011-12 की तुलना में 2017-18 के दौरान औसत खर्च में 3.7 फीसदी की गिरावट देखी गई। गौरतलब है कि इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता खर्च 8.8 फीसदी नीचे गिरा है। जबकि, शहरों में यह 2 फीसदी की दर से बढ़ा है। यह सर्वे जुलाई 2017 और जून 2018 के दौरान कराया गया था। इसके बाद सरकार ने संसद को बताया था कि सर्वे से जुड़े आंकड़ों को वह जून 2019 में सार्वजनिक करेगी। लेकिन, इसे इस दौरान भी जारी नहीं किया गया।

शुक्रवार को एक बयान जारी कर MOSPI (Ministry of Statistics and Programme Implementation) ने कहा, “मत्रालय ने उपभोक्ता खर्च से संबंधित सर्वे से जुड़ी उस मीडिया रिपोर्ट को देखा है, जिमसें NSS के हवाले से बताया गया है कि उपभोक्ता खर्च में कमी आ रही है और प्रतिकूल आंकड़ों को देखते हुए रिपोर्ट को रोक दिया गया है। लेकिन, हम आपको बताना चाहेंगे कि आंकड़े और रिपोर्ट का पुनरीक्षण का काम एक कठिन प्रक्रिया है, जिसे सर्वे के माध्यम से पेश किया जाता है। ऐसे सभी प्रतुतियां जो मंत्रालय के समक्ष आती हैं, वे ड्राफ्ट रूप में होती हैं और उन्हें अंतिम रिपोर्ट नहीं माना जा सकता।”

गौरतलब है कि बिजनस स्टैंडर्ड ने अपनी रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से बताया है कि देश में गरीबी का स्तर काफी बढ़ गया है। विशेषज्ञों ने अखबार को बताया कि सबसे चिंताजनक बात यह है कि दशकों बाद फूड कंजंप्शन में गिरावट देखी जा रही है। मीडिया रिपोर्ट के बाद MOSPI ने कहा कि उसकी चांज में उपभोक्ता खर्च के पैटर्न में इजाफे की बात सामने आई है।