लखनऊ। "की रंगों में खून हिंदुस्तान का है सांस में खुशबू इसी जमीन को चुना है कि तेरे वास्ते दुनिया में एक वतन ही सही मगर यह मुल्क इबादत की जा है मेरे लिए और जो इसे जान से ज्यादा प्यार ना कर पाए खुद का वफादार तो वह हो ही नहीं सकता और खुदा से जिसको इश्क है प्यार मजहब से वतन का तो कभी गद्दार हो ही नहीं सकता"

ऐसी आरजू रखने वाले अश्फ़ाकुल्लाह खान का जन्मदिवस आज राजधानी मे मुस्लिम स्टूडेंट्स ओर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया यानि एमएसओ ने एक संगोष्ठी का आयोजन मड़ियाहूं जानकीपुरम में करके मनाया. इस संगोष्ठी में वक्ताओ ने युवाओ से आह्वान किया कि अश्फ़ाकुल्लाह खान के जीवनी से सबक लेकर समाज मे आपसी भाईचारा – प्रेम और शांति को बढ़ाने मे अपना रोल अदा करे।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुये मुख्य वक्ता शाही जामा मस्जिद मड़ीयाव के इमाम मौलाना फैज़ान अज़ीज़ी ने कहा कि अश्फ़ाकुल्लाह खान भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी दे दी गयी। उन्होने कहा कि 1857 के संग्राम मे भी और उसके बाद के सभी आंदोलनो मे मुस्लिम समाज और विशेष रूप से सूफी विचारधारा के लोगो ने अहम किरदार अदा किया, उन्होने कहा कि अश्फ़ाकुल्लाह खान भी एक सूफी विचारधारा “वारसी” पंथ से संबंध रखते थे और हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक मशहूर सूफी संत देवा शरीफ के वारिस पाक को अपना गुरु मानते थे इसीलिए अपने नाम के आगे “वारसी” लगाते थे।

अज़ीज़ी ने कहा कि अश्फ़ाकुल्लाह खान हिन्दू मुस्लिम एकता के बड़े हामी थे, उनके सबसे घनिष्ठ मित्रो मे राम प्रसाद बिस्मिल का शुमार होता है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।

अबू अशरफ (UP State President, MSO) ने अपने सम्बोधन मे कहा कि कई क्रांतिकारियों के नाम जोड़े में लिए जाते हैं जैसे भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और राजगुरू. ऐसा ही एक और बहुत मशहूर जोड़ा है रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां का. इसका रीजन सिर्फ ये नहीं कि काकोरी कांड में यही दोनों मेन आरोपी थे. बल्कि इसका रीजन था कि दोनों एक-दूसरे को जान से भी ज्यादा चाहते थे. दोनों ने जान दे दी, पर एक-दूसरे को धोखा नहीं दिया. रामप्रसाद बिस्मिल के नाम के आगे पंडित जुड़ा था. वहीं अशफाक थे मुस्लिम, वो भी पंजवक्ता नमाजी. पर इस बात का कोई फर्क दोनों पर नहीं पड़ता था. क्योंकि दोनों का मकसद एक ही था. आजाद मुल्क. वो भी मजहब या किसी और आधार पर हिस्सों में बंटा हुआ नहीं, पूरा का पूरा. इनकी दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं.

अबू अशरफ ने कहा कि मुस्लिम युवा सबसे पहले अच्छा इंसान बन कर दिखाए क्योंकि इल्म और अच्छाई से आप अब्दुल कलाम जैसी शख्सियत बन सकते हैं. उन्होंने याद दिलाया की पैगम्बर मुहम्मद साहब ने हमसे कहा है की शिक्षा के लिए चीन तक जाना पड़े तो जाना चाहिए. अशरफ ने कहा कि नवीन विज्ञान और आधुनिक शिक्षा के लिए यदि हमें एक वक़्त का खाना मिले और दूसरे वक़्त का खर्च बच्चे की पढाई पर करना पड़े तो हमें ऐसा ही करना चाहिए. मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए उन्होंने आधुनिक शिक्षा के प्रति बेरुखी को बताया और युवाओं से अपील की कि वह समय नष्ट किये बिना ज्ञान अर्जन में जुट जाएँ. अशरफ ने अपील की कि इस्लाम में आसानी रखी गयी है लेकिन भटकी हुई नयी विचारधारा लेकर कुछ लोग भारत में घुस आये हैं और वह अपनी कट्टरवादी विचारधारा को थोप कर देश को नुकसान पहुँचाने की फ़िराक में हैं. बिना नाम लिए उन्होंने अरब से पोषित वहाबी विचारधारा पर ज़बरदस्त हमला करते हुए कहा कि भारत में इस्लाम ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के दम पर पहचाना जाता है लेकिन आतंकवाद की दबी ज़बान में पैरोकारी करने वाले देश के दुश्मन हैं. उन्होने सूफीवाद को इस्लाम का सही स्वरुप बताते हुए युवाओं से अपील की कि वह सूफी विचारधारा को अपनाएँ.