नई दिल्ली: अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने के सरकार के तमाम प्रयास अभी नाकाफी साबित हो रहे हैं। इस बीच आर्थिक मोर्चे पर एक और बुरी खबर आई है। मौजूदा वित्त वर्ष के पहले 6 महीने में कमर्शियल सेक्टर में ओवरऑल फाइनेंसियल फ्लो या वित्तीय प्रवाह में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है।

कमर्शियल सेक्टर में नकदी के प्रवाह में करीब 88 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली है। आरबीआई के हालिया आंकड़ों के अनुसार साल 2019-20 में अब तक कमर्शियल सेक्टर में बैंकों और गैर-बैंकों के फंड का प्रवाह 90,995 करोड़ रहा। वहीं, यह पिछले साल समान अवधि में 7,36,087 था।

इस कमर्शियल सेक्टर में कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और परिवहन को शामिल नहीं किया गया है। इस बीच वित्तीय क्षेत्र संकट के दौर से गुजर रहा है। इस सेक्टर में 1,25, 6000 करोड़ का रिवर्स फ्लो देखने को मिल रहा है। यह कमर्शियल सेक्टर से नॉन-डिपोजिट टेकिंग एनबीएफसी की तरफ है।

बैंकों की तरफ से कमर्शियल सेक्टर का नॉन फूड क्रेडिट फ्लो में भी गिरावट देखने को मिल रही है। यह 1,65,187 से रिवर्स फ्लो होकर 93,688 हो गया है। नॉन-बैंक्स की तरफ से सबस्क्राइब किया जाने वाला कमर्शियल पेपर की नेट इश्यूएंस 2,53,669 से घट कर सितंबर के मध्य तक 19,118 करोड़ पहुंच गई है।

आरबीआई का कहना है कि कमर्शियल सेक्टर में वित्तीय संसाधनों का ओवरऑल फ्लो में कमी मुख्य रूप से बैंकों की तरफ से लोन देने में कमी के कारण है। यह साफ तौर पर कमजोर मांग और जोखिम से बचने का परिणाम है। इससे पहले केंद्रीय बैंक ने साल 2019-20 के लिए सकल घरेलू उत्पाद में विकास की दर में अपने पहले के अनुमान 6.9 फीसदी की दर में कटौती करते हुए इसके 6.1 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया।

यह अर्थव्यवस्था में सुस्ती को साफ तौर पर दर्शाता है। पिछले कुछ महीनों में सरकार की तरफ से कई नियामकीय पहल और फंड की उपलब्धता के उपाय करने से बाजार के सेंटिमेंट्स में कुछ हद तक सुधार हुआ है।