नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद मिलकियत मुक़दमे की आज 31 वे दिन सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की और से बहस करते हुए एडवोकेट ज़फ़रयायब जिलानी ने अदालत को बताया कि कल की बहस के दौरान उन्होंने ऐसा नहीं कहा था कि मुस्लिम पक्ष ने राम चबूतरे को राम का जन्मस्थान स्वीकार कर लिया| आज उन्हें अख़बारों के माध्यम से पता चला कि अदालत में दिए गए बयान गए उनके बयान को किस परिदृश्य में देखा गया | उन्होंने अदालत को सफाई देते हुए कहा कि मुस्लिम पक्ष का नहीं बल्कि हिन्दू पक्ष की आस्था है कि राम का जन्म चबूतरे पर हुआ था बल्कि हमारा मानना हमेशा से यही रहा है फड़ बाबरी मस्जिद की किसी भी जगह राम का जन्म नहीं हुआ है बल्कि अयोध्या में किसी स्थान पर हुआ होगा | इस स्पष्टीकरण के बाद एडवोकेट ज़फ़रयाब जिलानी ने पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ को बताया कि उनकी आँख का ऑपरेशन होने वाला है इसलिए उन्हें दस्तावेजात पढ़ने में समस्या का सामना है अतएव दस्तावेजात पढ़ने के लिए उन्हें सहायक की मदद लेने की अनुमति दी जाय जिसपर अदालत ने मंज़ूरी दे दी और वकील आकृति चौबे ने उनकी सहायता की |

मुस्लिम पक्ष ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि उसके इस रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है कि इस बात के कोई साक्ष्य नहीं है कि 2.27 एकड़ का विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान था। उन्होंने यह भी कहा कि उनका यही तात्पर्य है कि मुस्लिम पक्ष ने 18 मई 1886 के जिला न्यायाधीश के फैसले को चुनौती नहीं दी थी।

मुस्लिम पक्ष ने एएसआई की 2003 की उस रिपोर्ट पर हमला बोला जिसमें पाए गए अवशेषों, प्रतिमाओं एवं कलाकृतियों के आधार पर यह सुझाव दिया गया है कि बाबरी मस्जिद से पहले एक ढांचा था। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि इसमें पुष्टि योग्य कोई भी निष्कर्ष नहीं है तथा यह अधिकतर आशयों पर अधारित है।

बहरहाल, न्यायालय ने कहा कि यदि एएसआई रिपोर्ट पर कोई आपत्ति थी तो विरोध करने वाले पक्ष को उसे उच्च न्यायालय के समक्ष उठाना चाहिए था क्योंकि कानून के तहत कानूनी समाधान उपलब्ध हैं।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने कहा, आपकी जो भी आपत्ति हो, भले ही वह कितनी भी मजबूत हो, उसकी सुनवाई हम नहीं कर सकते।

पीठ ने दिवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों की चर्चा करते हुए यह बात कही। इन प्रावधानों के तहत स्वामित्व वाले मुकदमे के पक्षकार अदालत के आयुक्त की रिपोर्ट पर आपत्ति उठा सकते हैं।