लखनऊ: सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ अतुल गोयल को व्यावहारिक अनुसंधान आधारित (एप्लीकेशन ओरिएंटेड इनोवेशन्स द्वारा) नई दवाओं और डायग्नोस्टिक्स के विकास के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रतिष्ठित एनएएसआई-रिलायंस इंडस्ट्रीज प्लेटिनम जुबली अवार्ड-2019 से सम्मानित किया गया है। उन्हें दिसंबर में हैदराबाद में आयोजित होने वाले होने वाले एनएएसआई के 89 वें वार्षिक सत्र में 3 लाख नकद रुपये और प्रशस्ति पट्टिका प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा। डॉ गोयल ने हड्डियों के फ्रैक्चर की तेजी से उपचार के लिए बायोडिग्रेडेबल मेडिकेटेड ऑर्थोबायोलॉजिकल (बोन इंप्लांट्स) विकसित करने के लिए हैदराबाद स्थित एक कंपनी को उनकी टीम द्वारा खोजे गए यौगिक S008-399 की तकनीक का लाइसेंस कर हस्तांतरण किया है।

डॉ गोयल और उनकी टीम कैंसर और न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों के लिए उपचार विकसित करने हेतु भी प्रयासरत है। उन्होंने गोल कृमि (सी. एलिगेंस) मॉडल में मौजूद परिवर्तनशील आयरन (III) आयनों की मात्रा की उपस्थिति को सीधे देखने के लिए पहली बार एक ऐसी फ्लोरोसेंट (प्रतिदीप्त) प्रोब एनएपी-3 की खोज की है जो कलरीमीट्रिक (रंग-आधारित) एवं रेशोमीट्रिक (अनुपात आधारित) दोनों ही आधार पर विश्लेषण करने मे सक्षम है। आयरन (III) आयनों के साथ जुड़ जाने पर प्रोब एनएपी-3, इसकी प्रतिदीप्ति को हरे से लाल रंग में बदल देता है, जिस से रंग एवं उसकी तीव्रता में बदलाव के आधार पर रक्त में आयरन की मात्रा के असंतुलन को मापा जा सकता है। यह एनएपी-3 प्रोब, थैलेसीमिया के रोगियों के लिए एक नई थैरानोस्टिक्स (चिकित्सा का एक नया क्षेत्र जो टार्गेटेड डायग्नोस्टिक टेस्ट (लक्षित नैदानिक परीक्षणों) आधारित टार्गेटेड थेरेपी को मिलाकर बना है ) के रूप में उपयोगी हो सकती है।

हाल ही में, उन्होंने अपने एक अन्य शोध में देखा है कि रोगियों से प्राप्त थर्ड स्टेज ह्यूमन सर्वाइकल कैंसर टिश्यूज़ में, लिपिड ड्रॉपलेट्स (एलडी) का अधिक मात्रा में संचय होता है। उन्होंने इन लिपिड ड्रॉपलेट्स को मार्कर के रूप में उपयोग करने के लिए उनकी इमेजिंग और उनकी मात्रा का निर्धारण करने के लिए येलो फ्लोरेसेंट प्रोब्स फ्लन-550 (FLUN-550) और फ्लन-552 (FLUN-552) की खोज की, जो सर्वाइकल कैंसर की शुरुआती अवस्था मे ही लिपिड ड्रॉपलेट्स (एलडी) की सही जानकारी देकर निदान में मदद करेंगे। इन निष्कर्षों को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में पेटेंट और प्रकाशित किया गया है।

सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ की प्रधान वैज्ञानिक डॉ रितु त्रिवेदी, नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (एनएएसआई) के डॉ पी॰ शील मेमोरियल लेक्चर अवार्ड-2019 (युवा महिला पुरस्कार) से सम्मानित की गईं हैं। उन्हें यह पुरस्कार बोन मेटाबोलिक डिसोर्डर्स (चयापचय अस्थि विकारों) विशेषकर ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट अनुसंधान के लिए दिया गया है। आपने अस्थि स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त एवं रासायनिक रूप से संश्लेषित अनेक नवीन योगिकों पर काम किया है। इनमें से, एक छोटे एवं शुद्ध योगिक के एंटी-बोन रिसोरप्टिव (अस्थिक्षय रोधी) एजेंट के रूप में विकसित किए जाने की संभावना है और इसे नैदानिक परीक्षणों (क्लीनिकल ट्रायल्स) के लिए तैयार किया जा रहा है। उन्होने शीशम (डल्बर्जिया सिसू) के मानकीकृत अंश (स्टेंडर्डाइज्ड एक्सट्रेक्ट) पर काम किया है जो एक ओस्टियोजेनिक (अस्थिजनक) एजेंट के रूप में कार्य करता है जिसे तेजी से फ्रैक्चर के उपचार करने वाले एजेंट के रूप में विकसित किया गया यह साथ ही प्राथमिक ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार में भी उपयोगी है। इसके अलावा, स्पिनैशिया ओलेरेशिया (देशी पालक) से निर्मित एक नैनोफॉरम्यूलेशन पर उसके काम ने ऑस्टियोआर्थराइटिस के उपचार एवं प्रबंधन के लिए भी एक उत्पाद तैयार किया है। इन प्रौद्योगिकियों को फार्मञ्जा हर्बल्स प्राइवेट लिमिटेड को लाइसेंस किया गया है। जो बाजार में क्रमशः रीयूनियन® और जॉइंट फ्रेश® नाम से उपलब्ध हैं एवं रजोनिवृत्ति के बाद के ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस के उपचार एवं प्रबंधन में बेहद उपयोगी हैं।

वर्तमान में डॉ त्रिवेदी ने अस्थियों के निर्माण में माइक्रोआरएनए की भागीदारी को अपने अनुसंधान के माध्यम से स्थापित किया है और दिखाया है कि कैसे एचडैक 1 को संदमित (सप्रेस) करने से वीनिंग (अस्थि निर्माण की अवधि) के दौरान माइक्रोआरएनए, एपिजेनेटिकली अस्थि निर्माण संबंधी प्रभावों (स्केलेटल एनाबॉलिक इफ़ेक्ट्स) को संपादित करता है। इसके साथ ही डॉ त्रिवेदी ने प्रयोगशाला जंतुओं में हड्डियों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए फ्लेवोनोइड-समृद्ध ट्रांसजेनिक पौधों की प्रभावशीलता को भी अपने अनुसंधान के माध्यम से स्थापित किया है। उन्होंने 90 से अधिक शोध पत्र अनेक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय शोधपत्रिकाओं में प्रकाशित किए हैं, जिन्हें पेटेंटों एवं प्रौद्योगिकियों के रूप में व्यावसायिक रूप दिया गया है।