लखनऊ: 38 साल पहले देश के सबसे बड़े सूबे के सीएम वी पी सिंह थे। उस समय ज्यादातर मंत्रियों की माली हालत आज की तरह नहीं थी। लेकिन इतनी खराब भी नहीं थी कि वो आयकर अदा न कर सकें। ये बात अलग है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज, अलाउंसेज एंड मिसलेनिअस एक्ट 1981 बनाया गया और यह व्यवस्था बनाई गई की सीएम और मंत्रियों का आयकर राज्य के खजाने से किया जाएगा।

38 साल बीत जाने के बाद कई तरह के नए कानून बनाए गए या पूराने कानूनों में संशोधन किए गए। लेकिन उस कानून में बदलाव नहीं हुआ। पिछले 38 साल से राज्य के खजाने से ही सीएम और उनके मंत्रिपरिषद के सदस्यों को भुगतान उस एक्ट के तहत किया जा रहा है। सवाल ये है कि चमचमाती गाड़ियों और शपथ पत्र में करोड़ों की चल अचल संपत्ति का दावा करने वाले मंत्रियों के पास इतना पैसा नहीं होता है कि वो खुद आयकर अदा कर सकें। इस सवाल का जवाब आसान है। लेकिन सच ये है कि वो अपना आयकर खुद अदा नहीं कर रहे हैं।

1981 से लेकर आज तक यूपी में 19 लोगों ने राज्य की कमान संभाली। इसके साथ ही मंत्रियों की संख्या भी करीब 1000 हो गई। लेकिन सरकारी खजाने से आयकर भरने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। यहां ये बताना जरूरी है कि जब 1981 में कानून बना तो वी पी सिंह ने क्या कहा था। उनका कहना था कि राज्य में ज्यादातर मंत्री गरीब है और उन्हें जो मिलता वो मानक के हिसाब से कम है उनकी जिम्मेदारी होती है लिहाजा राहत देते हुए उनकी आयकर अदा करने की जिम्मेदारी सरकार की है।

अब बात करते हैं कि मौजूदा सरकार की। यह सरकार दो साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी है और दो वित्तीय वर्षों में सीएम और उनके सहयोगियों पर टैक्स की देनदारी 86 लाख की थी जिसे खजाने से भरा गया। इसकी पुष्टि वित्त विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने भी की है। वर्तमान में सीएम को करीब सैलरी और भत्ते के रूप में 3 लाख 65 हजार रुपये मिलते हैं।