नई दिल्ली: देश की अर्थव्यवस्था आने वाले दिनों में और खराब हो सकती है। मौजूदा दौर मंदी और इसके दबाव के कारण सरकार मौजूदा वित्त वर्ष में अपने राजकोषीय घाटे को काबू में रखने के लक्ष्य से चूक सकती है।

मंदी के बीच टैक्स कलेक्शन में कमी को देखते हुए सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भले ही सरकार को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से अतिरिक्त लाभांश मिल गया हो लेकिन अर्थव्यवस्था इतने भर से सुधर जाए ऐसे संकेत नहीं मिल रहे हैं। मालूम हो कि इस साल जून में खत्म हुई तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर पिछले 6 साल में सबसे कम 5 फीसदी रही है।

रॉयटर्स की खबर के अनुसार सूत्रों का कहना है कि मंदी से निपटने के उपायों के बीच सरकार साल 2019 के अंत तक राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को 3.3 फीसदी से बढ़ाकर 3.5 फीसदी कर सकती है। सरकार की कुल आय और खर्च (व्यय) में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। सरकार की तरफ से अधिक खर्च करने पर यह घाटा अधिक बढ़ेगा। वहीं, पिछले महीने (अगस्त में) जीएसटी कलेक्शन घटकर एक लाख करोड़ रुपये से नीचे (98,202 करोड़) आ गया।

जुलाई में टैक्स कलेक्शन 1.02 लाख करोड़ रुपये रहा था। खबर के अनुसार वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि सरकार नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन, जनरल इंश्योरेंस कॉर्प, और निर्माण वित्त कंपनी हुडको जैसी कुछ सरकारी कंपनियों में अपनी आंशिक हिस्सेदारी को बेचने की योजना बना रही है।

खबर में सरकार के दो सलाहकारों के हवाले से कहा गया है कि उन लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आर्थिक मंदी से निपटने के लिए राजकोषीय लक्ष्य को परिवर्तित करने और सबसे अधिक प्रभावित ऑटो व टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों को मदद उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। दूसरी तरफ निजी अर्थशास्त्रियों ने साल 2019-20 के लिए जीडीपी में वृद्धि के आंकड़े को संशोधित करते हुए 5.8 फीसदी का अनुमान व्यक्त किया है।

इससे पहले इन लोगों ने 6.8 फीसदी जीडीपी की दर से अर्थव्यवस्था में वृद्धि की बात कही थी। मालूम हो कि इस साल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ अप्रैल-जून की अवधि में घटकर 0.6 फीसदी ही रह गई है। इससे जीएसटी, कॉरपोरेट टैक्स के कलेक्शन पर असर पड़ा है।