बेंगलुरु: कर्नाटक बीजेपी में अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठने लगी है. कोप्पल में तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बीएल संतोष के पोस्टर जलाए गए. कुछ मंत्री नाराज़ हैं क्योंकि उन्हें उप मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया और कुछ विधायक मंत्री न बनाए जाने से नाराज़ हैं. उत्तर कर्नाटक के शहर कोप्पल में बीजेपी के अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के केंद्रीय महासचिव बीएल संतोष के पोस्टर दलित नेता श्रीरामलु के समर्थकों ने जलाए. वे इसलिए नाराज़ हैं क्योंकि श्रीरामलु को उप मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया.

श्रीरामलु के अलावा उप मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से खफा हुए नेताओं में वोक्कालीग्गा नेता आर अशोक भी शामिल हैं. आर अशोक पहले उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं. साथ में ओबीसी नेता ऐशश्वरप्पा भी उप मुख्यमंत्री न बनाए जाने से निराश हैं.

नाराज मंत्रियों में से एक सीटी रवि इतने खफा हैं कि मंत्री की गाड़ी लौटाने पर उतारू हैं. सीटी रवि को पर्यटन और कन्नड़ा विभाग का मंत्री बनाया गया है. उन्होंने कहा कि 'मैंने तो मंत्री का पद भी नहीं मांगा था. कुछ बातें हैं जो सही वक्त पर ही साफ होंगी. मुझे कुछ कहना है, जो मैं समय आने पर कहूंगा.'

मामला सिर्फ उप मुख्यमंत्रियों तक ही सीमित नहीं है, आधा दर्जन विधायक खफा हैं क्योंकि वरिष्ठ होने के बावजूद उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई. उमेश कत्ती, अरविंद लिम्बवाली, रेणुकाचर्या, गुलाहट्टी शेखर और थीप्पा रेड्डी मंत्री न बनाए जाने से काफ़ी नाराज़ हैं. वे कैमरे के पीछे अपनी नाराजगी जताते रहे हैं. दूसरी तरफ मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का कहना है कि 'कोई असंतोष नहीं है. बेकार बात है ये सब.'

इस सबके बीच जेडीएस-कांग्रेस के 16 बागी विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. उन्होंने बीजेपी आलाकमान पर अच्छा खासा दबाव बना रखा है ताकि सुप्रीम कोर्ट में उनके निलंबन के मामले पर जल्द फैसला हो सके. येदियुरप्पा सरकार विधानसभा में बहुमत के न्यूनतम आंकड़े में सिर्फ तीन विधायकों के साथ बढ़त बनाए है.

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा कि 'उप मुख्यमंत्री के पद का कोई संवैधानिक महत्व नहीं है. लगता है कि पार्टी आलाकमान ने येदियुरप्पा के पंख कुतरने के लिए ही तीन उप मुख्यमंत्री बनाए हैं.'

सत्ता बदली है, मुख्यमंत्री बदले हैं, लेकिन हालात नहीं बदले. जब जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार बनी थी तब मुख्यमंत्री बनने के बाद कुमारस्वामी ने कुछ ऐसे ही हालात का सामना किया था. फिर एक दिन ऐसा आया जब उनकी सरकार गिर गई. मौजूदा परीस्थितियां कम से कम येदियुरप्पा को सुकून देने वाली तो नहीं लग रहीं.