नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के आदिवासी के दर्जे के दावे को सरकार द्वारा नियुक्त समिति ने खारिज कर दिया है। सरकारी जांच में यह साबित होने के बाद उनका जाति प्रमाण पत्र और अनुसूचित जनजाति के तहत उन्हें मिल रहे सभी लाभों को निरस्त कर दिया गया है। हाई कोर्ट के आदेश पर डीडी सिंह की अध्यक्षता में बनी समिति ने 21 अगस्त को अपनी जांच रिपोर्ट सरकार के समक्ष रखी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अजीत जोगी कोई भी ऐसा प्रमाण नहीं दे सके जिससे वह यह साबित कर सकें कि वह आदिवासी जाति से ताल्लुक रखते हैं। लिहाजा बिलासपुर के कलेक्टर को छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी नियम 2013 के तहत उन पर एक्शन लेने के लिए कहा गया।

इस रिपोर्ट पर अजीत जोगी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसके लिए मुख्यमंत्री भुपेश बघेल को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा है कि ‘कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी की नजरों में मैं एक आदिवासी हूं लेकिन सीएम बघेल की नजरों में मैं आदिवासी नहीं हूं। मेरे बेटे अमित जोगी को कोर्ट ने आदिवासी माना है तो फिर मुझे क्यों नहीं माना जा रहा?’ समिति की यह रिपोर्ट अजीत जोगी और उनके परिवार के लिए बड़ा झटका है क्योंकि बीते दो दशक से उनकी जाति को लेकर कई सवाल खड़े होते रहे हैं। इससे पहले भी एक समिति गठित की गई थी और उस समिति की रिपोर्ट में भी यही बात सामने आई थी।

मालूम हो कि अजीत 2016 में कांग्रेस से अलग हो गए थे और उन्होंने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम की पार्टी गठित की। बता दें कि जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था तब से ही अजीत जोगी के आदिवासी जाति से होने पर सवाल खड़े होते रहे हैं। उनके राजनीतिक दुश्मनों ने इस मामले की याचिका कोर्ट में दाखिल की जिसमें कहा गया कि जोगी का परिवार बिना एसटी कोटे में आए हुए इसका लाभ ले रहा है।

कोर्ट में इस मामले को लेकर दो अलग-अलग याचिका दाखिल होने के बाद उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था। छत्तीसगढ़ गठन के बाद कांग्रेस सरकार ने अजीत जोगी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था। इसके बाद से ही बीजेपी जोगी की जाति को लेकर उनपर सवाल उठाती रही है।