नई दिल्ली: म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ सेना की क्रूरता को लेकर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में नया खुलासा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि साल 2017 में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के नरसंहार के इरादे से म्यांमार सेना ने रोहिंग्या महिलाओं और लड़कियों के साथ यौन हिंसा की।

इस स्वतंत्र जांच समिति का गठन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् ने साल 2017 में ही किया था। रॉयटर्स की खबर के अनुसार म्यांमार सरकार को ‘नरसंहार कन्वेंशन्स के तहत नरसंहार के कृत्यों की जांच और दंड देने में विफलता के लिए’ जिम्मेदार ठहराया गया। उस समय यह भी कहा गया था कि म्यांमार सरकार किसी भी तरह की जवाबदेही में पूरी तरह से असफल रही है।

म्यांमार के रखाइन प्रांत में अगस्त 2017 में अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी यानी एआरएसए ने पुलिस ठिकानों पर हमले किए थे। इसके बाद म्यांमार सेना ने रोहिंग्या समुदाय के लोगों के खिलाफ अभियान चलाया। सेना का कहना था कि वो विद्रोहियों को निशाना बना रहे हैं।

सेना की जवाबी कार्रवाई के कारण रखाइन प्रांत से हजारों रोहिंग्या मुसलमानों पलायन कर बांग्लादेश चले गए। सेना की कार्रवाई में कई रोहिंग्या मुसलमानों के घर जला दिए गए। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि सैकड़ों रोहिंग्या महिलाओं और लड़कियों के साथ रेप किया गया। इनमें से 80 फीसदी गैंगरेप थे। इन गैंगरेप के लिए म्यामांर सेना जिम्मेदार है।

संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के बारे में म्यांमार में सेना प्रवक्ता ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल टून टून नेई ने इन आरोपों को आधारहीन और ‘कहीसुनी बातों’ पर आधारित बताया। सेना प्रवक्ता ने कहा कि मैंने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में दी गई जानकारी को नहीं पढ़ सकता हूं क्योंकि यह किसी भी सभ्य समाज में महिलाओं के सामने कहे जाने लायक नहीं है।

उन्होंने कहा कि म्यांमार में यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून है। उन्होंने यह भी कहा कि सैन्य स्कूलों में सैनिकों को यौन अपराधों के खिलाफ चेतावनी भी दी जाती है। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि म्यांमार में रोहिंग्या महिलाओं के साथ सेना द्वारा यौन उत्पीड़न की बात सामने आई है।

इससे पहले अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के विद्रोह को दबाने की बर्बर कोशिश और मानवता के ख़िलाफ़ सेना के गुनाहों के सबूत जारी किए थे। एमनेस्टी का कहना था कि सेना के जवानों ने सुनियोजित अभियान के तहत रोहिंग्या समुदाय के गांवों को निशाना बनाया। महिलाओं के साथ रेप किए, लोगों को प्रताड़ित किया और उनकी हत्याएं की।