नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यस्था में घरेलू बचत का बड़ा योगदान होता है। लोग अपनी बचत निवेश करते हैं जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है। लेकिन लोगों की घरेलू बचत पिछले एक दशक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। दूसरी तरफ रिटेल लोन सेक्टर दो अंकों की दर से बढ़ रहा है। विशेषज्ञ इसे बेहद चिंताजनक मानते हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक घरों की वित्तीय देनदारियां बढ़ रही हैं, जो अच्छा संकेत नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक देश की बचत दर का हिस्सा जीडीपी में घटकर 2018 में 30.5 प्रतिशत पर आ गया है। 2008 में यह करीब 37 प्रतिशत था।

विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के उपभोग की आदत लोगों में बढ़ी है। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से लेकर छुट्टियों तक, फुटकर लोन सालाना 17 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। हालांकि लोगों की घरेलू बचत में कमी जीडीपी में गिरावट का एकमात्र कारण नहीं हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि 2007-08 के दौरान हमने ग्रोथ देखी थी क्योंकि बचत ज्यादा थी।

लोगों की घेरलू बचत घटने का असर निवेश और खरीद में गिरावट के रूप में भी देखा जा सकता है। इंडस्ट्री डेटा से पता चला कि सवारी गाड़ियों की ब्रिक्री में पिछले 18 सालों में सबसे बड़ी गिरावट आई है। पिछले साल की तुलना में कारों की बिक्री में देश भर में बड़ी गिरावट आई।

पिछले कुछ सालों से भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ी से बढ़ रही थी। वहीं अब भारत की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट आई है।