नई दिल्ली: आयकर के नियमों के अनुसार सबसे अधिक नौकरीपेशा वर्ग ही पिस रहा है। जबकि बिजनेसमैन और कंसल्टेंट हर महीनें विभिन्न मदद में खर्च के तहत छूट हासिल कर लेते हैं। जबकि वेतनभोगी का नियोक्ता उसके वेतन से टीडीएस काट लेता है। इससे उसके हाथ में आने वाला वेतन महत्वपूर्ण रूप से कम हो जाता है।

स्थिति यह है कि नौकरीपेशा वर्ग को कंसल्टेंट की तुलना में तीन गुना अधिक टैक्स देना पड़ता है। TOI की खबर के अनुसार इसे ऐसे आसानी से समझा जा सकता है। यदि नौकरीपेशा और कंसल्टेंट की सालाना आय 30 लाख है तो कंसल्टेट को सीधे-सीधे 50 फीसदी यानी की 15 लाख रुपये की आय कर मुक्त हो जाती है। जबकि नौकरी पेशा वर्ग के खाते में सिर्फ प्रोफेशन टैक्स और स्टैंडर्ड डिडक्शन के रूप में क्रमशः 2400 रुपये और 40 हजार रुपये की छूट मिलती है।

इसके अलावा दोनों वर्ग सेक्शन 80 सी और 80 डी के तहत क्रमशः 150000 और 25 हजार की छूट हासिल करते हैं। इन सब के बाद नौकरीपेशा वर्ग की टैक्सेबल इनकम जहां 27,82600 रुपये होती है वहीं कंसल्टेंट को 13,25,000 रुपये की आय पर ही कर देना होता है। इस राशि पर नौकरीपेशा वर्ग जहां 6,73,171 रुपये टैक्स देता है वहीं कंसल्टेंट को 2,18,400 रुपये टैक्स बनता है। इस तरह कंसल्टेंट की तुलना में नौकरीपेशा वर्ग की तरफ से अदा किया जाने वाला कर 200 फीसदी अधिक है।

इस स्थिति में नौकरीपेशा वर्ग इस बार बजट में सरकार और वित्त मंत्री से स्टैंडर्ड डिडक्शन में इस बार अधिक छूट चाहता है। इससे पहले 2019 के अंतरिम बजट में स्टैंडर्ड डिडक्शन की राशि को 40 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपये किया गया था। डेनमार्क और दक्षिण कोरिया जैसे कुछ देश नौकरी पेशा वर्ग को निश्चित आय पर छूट देते हैं।

इससे पहले ट्रैवल और मेडिकल रिइंबर्समेंट जैसे महत्वपूर्ण छूट वाले अलाउंसेस की लिमिट में लंबे समय से कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। महंगाई के बढ़ने के बावजूद यह पहले की तरह ही बने हुए हैं। उदाहरण के लिए बच्चों का एजुकेशन अलाउंसेस (100 रुपया प्रति महीना, दो बच्चों तक) और हॉस्टल अलाउंसेस(300 रुपये प्रतिमाह, अधिकतम दो बच्चों तक) में कोई बदलाव नहीं हुआ है।