पिछले डेढ़ साल के अंदर नवरत्न कम्पनी का कैश रिजर्व 9,344 करोड़ घटा

नई दिल्लीः देश की सबसे बड़ी तेल और गैस उत्पादक कंपनी ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) इन दिनों कम नकदी भंडार (कैश रिजर्व) के संकट से गुजर रही है। सितंबर 2018 में कंपनी के पास कुल 167 करोड़ रुपये का ही कैश रिजर्व था जबकि मार्च 2018 में यह रकम 1,013 करोड़ थी।

एक साल और पहले मार्च 2017 में ओएनजीसी की कैश रिजर्व 9,511 करोड़ था। यानी पिछले डेढ़ साल में ओएनजीसी के कैश रिजर्व में 9,344 करोड़ रुपये की कमी आई है। कंपनी अपने फंड का इस्तेमाल हाल के दिनों में ऋण का भुगतान करने में कर रही है। मार्च 2018 तक यह ऋण 25,592 करोड़ था जो सितंबर 2018 में घटकर 13,994 करोड़ रुपये रह गया।

मोदी सरकार की विनिवेश नीति की वजह से भी इस नवरत्न कंपनी का कैश रिजर्व प्रभावित हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी कंपनियों से अधिक लाभांश लेने, शेयरों की बाय बैक पॉलिसी और अन्य राजकीय स्वामित्व वाली कंपनियों की पुनर्खरीद की केंद्र सरकार की नीति की वजह से ओएनजीसी की आर्थिक स्थिति को चोट पहुंची है।

सरकार की नीतियों की वजह से पिछले साल ओएनजीसी को 36,915 करोड़ में हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) का अधिग्रहण करना पड़ा है। इसके लिए ओएनजीसी को नकदी भंडार के माध्यम से यह सौदा करना पड़ा। इसके अलावा कंपनी को 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का उधार भी लेना पड़ा।

कंपनी ने पिछले साल मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल लिमिटेड (एमआरपीएल) का भी अधिग्रहण किया है। हालांकि, नकद लेन-देन की वजह से इसमें भी अभी गतिरोध बना हुआ है।

विशेषज्ञों का मानना है कि तेल और प्राकृतिक गैस खनन का व्यवसाय जोखिम भरा होता है, इसलिए इस पेशे में पर्याप्त मात्रा में कैश बैलेंस की जरूरत होती है। ओएनजीसी के एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक कंपनी के पास सामान्य तौर पर 5000 करोड़ रुपये का कैश रिजर्व होना चाहिए। कंपनी का नकदी भंडार खाली होने की वजह लाभांश भी है।

कंपनी ने 2017-18 में कुल 8,470 करोड़ का लाभांश भुगतान किया था जो 2016-17 में 7,764 करोड़ रुपये था। यानी इस मद में भी ओएनजीसी पर 706 करोड़ का भार पड़ा। इसके अलावा कंपनी ने पिछले दिसंबर में 4,022 करोड़ रुपये के शेयर को बायबैक करने की भी घोषणा की थी।

ओएनजीसी के पूर्व निदेशक (वित्त) आलोक कुमार बनर्जी ने ‘द प्रिंट’ से बातचीत में कहा कि 63 साल के ओएनजीसी के इतिहास में यह पहला मौका है जब कंपनी का कैश रिजर्व इस स्तर पर पहुंचा है। उन्होंने इसे अलार्मिंग सिचुएशन कहा है। बतौर बनर्जी कंपनी की ये स्थिति खासकर एचपीसीएल और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के अधिग्रहण की वजह से आई है।