नई दिल्ली: सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के जरिये चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए शुरू हुई इलेक्टोरल बांड योजना को लेकर नई जानकारी सामने आई है।एक मीडिया हाउस ने अपनी खबर में दावा किया है कि आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार चुनावी बांडों की बिक्री और खरीद के लिए अधिकार रखने वाली एक मात्र भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने पिछले वर्ष 1 मार्च से अब तक 2,772.78 करोड़ रुपये की कीमत के इलेक्ट्रोरल बांड जारी किए हैं। जिसमें से लगभग आधी राशि 1,365.69 करोड़ रुपये बीते 1 से 15 मार्च की सेल विंडो के दौरान आई। रिपोर्ट के मुताबिक एसबीआई ने बताया कि 15 दिनों की अवधि के दौरान जारी किए गए 2,742 बांडों में से 1,264 बांडों की कीमत 1 करोड़ रुपये और उससे ज्यादा थी।

बता दें कि नियम के मुताबिक इलेक्टोरल बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्यवर्ग में जारी किए जाते हैं।

सरकार ने भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी समेत तमाम राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए नकद चंदे के विकल्प के तौर पर इलेक्टोरल बांड योजना शुरू की थी। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में सभी राजनीतिक दलों को अब तक प्राप्त चंदे का विवरण 30 मई तक सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग सौंपने का निर्देश दिया था।

दरअसल, एक एनजीओ एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें इलेक्टोरल बांड योजना को चुनौती दी गई थी। याचिका के जरिये इलेक्टोरल बांड पर स्टे लगाने या दानदाता के नामों की घोषणा करने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की बेंच ने राजनीतिक पार्टियों को आदेश दिया था कि वे दानदाताओं की पहचान और चुनावी बांड की रसीदें चुनाव आयोग को पेश करें।

बता दें कि कोई भी भारतीय नागरिक, संस्था या फिर कंपनी इलेक्टोरल बांड खरीद सकती है। इसके लिए KYC फॉर्म भरना होता है। बांड देने और खरीदने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है। बांड की अवधी 15 दिन के लिए मान्य होती है। हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग को बताना होता है कि बांड के जरिये उसे कितनी राशी मिली है।