नई दिल्ली: दुनिया के नामी रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ‘द वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब’ ने भारत में गरीबों को लुभाने के लिए भाजपा और कांग्रेस की योजनाओं का विशद अध्ययन कर कहा है कि कांग्रेस की न्याय (न्यूनतम आय योजना) योजना गेमचेंजर हो सकती है। जबकि भाजपा की गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण की योजना का फायदा सिर्फ अमीर लोग उठा सकेंगे। लैब ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में सामाजिक खर्च बहुत कम है, जबकि आर्थिक असमानता की खाई बहुत चौड़ी है। लैब के को-डायरेक्टर ल्यूकस चांसेल ने कहा कि आगामी सरकार को आर्थिक असमानता दूर करने के लिए प्रतिबद्ध होकर काम करने होंगे क्योंकि अबतक की सरकारों ने इसमें उदासीनता दिखाई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1980 के दशक से ही 0.1 फीसदी धनकुबेरों ने देश की 50 फीसदी आबादी की तुलना में अधिकांश संपत्ति पर कब्जा कर रखा है।

लैब ने भाजपा और कांग्रेस द्वारा मिशन 2019 के तहत गरीबों को लुभाने के लिए लॉन्च की गई योजनाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया है। रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा 25 मार्च, 2019 को घोषित न्याय योजना से देश के करीब 20 फीसदी लोगों को फायदा हो सकता है। यानी कुल 5 करोड़ गरीब परिवारों (एक परिवार में औसतन पांच लोगों के हिसाब से कुल 25 करोड़ लोगों) को न्यूनतम आय की गारंटी के तहत सीधे फायदा हो सकता है। योजना के मुताबिक इतनी बड़ी आबादी को हरेक महीने 6,000 रुपये खाते में कैश डाले जाएंगे। सालाना यह रकम 72,000 होगी। इसके लिए वैसे परिवार योग्य होंगे जिनकी मासिक आय 12000 रुपये या उससे कम होगी।

रिपोर्ट में इस योजना को गेमचेंजर बताते हुए कहा गया है कि इससे जीडीपी पर 1.3 फीसदी का बोझ आएगा लेकिन समाज के 33 फीसदी गरीब परिवारों की आर्थिक उन्नति होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर योजना में सालाना एक लाख रुपये दिए जाते तब जीडीपी पर 2.6 फीसदी का बोझ आता मगर देश की 48 फीसदी निचली तबके के परिवार लाभान्वित होते। रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यूनतम आय देने से गरीबों की जिंदगी में अप्रत्याशित बदलाव की उम्मीद है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि न्यूनतम आय की वजह से न केवल सामाजिक खर्च में इजाफा होगा बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी गुणात्मक बदलाव आ सकेंगे।

हालांकि, रिसर्च संगठन ने भाजपा द्वारा गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने की बात को राजनीतिक स्टंट करार दिया है और कहा है कि 8 लाख रुपये की सालाना आय, पांच एकड़ से कम कृषि भूमि, 1000 वर्गफीट से कम क्षेत्र में घर या 900 वर्गफीट (नोटिफाइड एरिया) से कम आवासीय भूखंड या 1800 वर्गफीट (नन नोटिफाइड एरिया) से कम आवासीय भूखंड की शर्तों की वजह से देश की अधिकांश आबादी आरक्षण की हकदार हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की करीब 93 फीसदी आबादी 8 लाख की आय सीमा के दायरे की वजह से, 96 फीसदी कृषि भूखंड पैमाने के हिसाब से, 80 फीसदी आवासीय परिसर के पैमाने से और 73 फीसदी शहरी आबादी रेससिडेंशियल प्लॉट के पैमाने की वजह से आरक्षण की हकदार हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर 50 फीसदी गरीब परिवारों को आरक्षण का लाभ देने के मकसद से नियम बनाए जाते तो वार्षिक आय का पैमाना 2 लाख रुपये पर तय किया जाना चाहिए था। अब ऐसा नहीं होने से समाज के धनी और प्रबुद्ध लोग इसका फायदा उठा सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सामाजिक न्याय की अवधारणा से अलग है और ऐसा प्रतीत होता है कि इसे राजनीतिक मकसद से लागू किया गया है।

बता दें कि 2019 के चुनावी रण में नरेंद्र मोदी सरकार ने जहां गरीब सवर्णों (EWS) को 10 फीसदी आरक्षण का गिफ्ट देकर उन्हें अपने पाले में करने की कोशिश की है तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गरीब परिवारों को न्यूनतम आय की गारंटी देने का वादा किया है। कांग्रेस की न्याय (न्यूनतम आय योजना) योजना के तहत हरेक गरीब परिवार को सालाना 72000 रुपये दिए जाएंगे। यानी हर महीने उन्हें 6000 रुपये दिए जाएंगे।