शिक्षा, सशक्तीकरण के लिए महत्वपूर्ण उपकरण है और भारत का मानना है कि लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने से महिला सश्क्तीकरण को प्रोत्साहन मिलता है और महिलाओं के अधिकारों को बेहतर सुनिश्चित किया जा सकता है। हालांकि देश में प्राथमिक स्तर पर स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या में सुधार हुआ है, लेकिन खासतौर पर माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर तक पहुंचते-पहुंचते लड़कियों की स्कूली शिक्षा बीच में ही छूट जाना आज भी एक बड़ी चुनौती है।

हाल ही में क्राई- चाईल्ड राईट्स एण्ड यू द्वारा किए गए एक अध्ययन ‘Educating the Girl Child: Role of Incentivisation and Other Enablers and Disablers’ के अनुसार लड़कियों के स्कूल में ठहराव से जुड़े कारक हैं। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर इस अध्ययन के परिणाम जारी किए गए।
अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल जाने के लिए किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भरता, लड़कियों की स्कूली शिक्षा जारी रहने में सबसे बड़ी बाधा (90 फीसदी) है। लगातार अनुपस्थिति (29 फीसदी) और स्कूल में महिला अध्यापक न होना (18 फीसदी) कुछ अन्य कारण हैं जिनकी वजह से लड़कियां अपनी स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़ देती हैं। अनुपस्थिति के कारण पर ध्यान दें तो बार-बार बीमार पड़ना (52 फीसदी) और घरेलू कामों में व्यस्तता (46 फीसदी) चार राज्यों में लड़कियों की शिक्षा में बड़ी बाधा है।

इसके अलावा बुनियादी सुविधाओं से जुड़े मुद्दे जैसे अच्छी सड़कों का अभाव, स्कूल जाने के लिए परिवहन सुविधाओं की कमी भी कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से लड़कियां अपनी स्कूली शिक्षा को जारी नहीं रख पातीं। गुजरात और आन्ध्रप्रदेश में लड़कियों ने बताया कि स्कूल से दूरी तथा स्कूल पहुंचने के लिए परिवहन में आने वाली लागत उनकी स्कूली शिक्षा में बड़ी बाधा है।

हरियाणा, आन्ध्रप्रदेश और गुजरात में माहवारी एक मुख्य कारण है, स्कूल में ज़रूरी बुनियादी सुविधाएं न होने के कारण लड़कियां अपनी स्कूली शिक्षा जारी नहीं रख पातीं। हालांकि 87 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय हैं, किंतु इन सभी शौचालयों में पानी और हाथ धोने की सुविधा नहीं है।

अध्ययन के दौरान अनुसंधान के लिए गुणात्मक एवं संरचनात्मक तरीकों को अपनाया गया, चार राज्यों हरियाणा, बिहार, गुजरात और आन्ध्रप्रदेश में 1604 परिवारों के साथ 3000 से अधिक साक्षात्कार किए गए।
स्कूल जाने के लिए अपनी इच्छा (88 फीसदी) और परिवार की ओर से प्रेरणा (87 फीसदी) भी मुख्य कारण हैं जो लड़कियों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करते हैं। परिवार (94 फीसदी) और समुदाय (95 फीसदी) की ओर से कोई रोक-टोक न होना भी लड़कियों को स्कूली शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता है, 70 फीसदी स्कूली छात्राओं ने बताया कि उन्होंने सरकारी योजनाओं या/ और विद्यालय से लाभ प्राप्त किया है।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि लड़कियों की शिक्षा में अभिभावकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है, गुजरात (89 फीसदी) और आन्ध्रप्रदेश (98 फीसदी) में लड़कियेां के अभिभावकों का मानना है कि लड़कियों की शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि बिहार (76 फीसदी) और हरियाणा (75 फीसदी) में यह प्रतिशतता तुलनात्मक रूप से कम है।

हालांकि लड़कियांे की शिक्षा में आने वाली बाधाओं के बारे में पूछने पर ज़्यादातर अभिभावकों ने बताया कि घर में काम-काज की ज़रूरत केे चलते वे लड़कियों को स्कूल नहीं भेजते, इस वजह से उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है।

इसके अलावा लड़कियों की शादी (66 फीसदी), घरेलू काम (65 फीसदी) और शिक्षा की लागत (62 फीसदी) भी मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से लड़कियों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है। इसके अलावा किसी के प्यार मंे पड़ जाना, अपने छोटे भाई बहनों की देखभाल या लड़कियों के लिए असुरक्षा का भाव भी मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से लड़कियों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है।

अध्ययन के दौरान 21 सरकारी प्रोत्साहन योजनाओं की प्रभाविता का मूल्यांकन भी किया गया, जिसमें से 12 मौद्रिक और शेष गैर-मौद्रिक प्रोत्साहन योजनाएं हैं।

बड़ी संख्या में योजनाएं लागू किए जाने के बावजूद, अध्ययन से पता चला है कि चार राज्यों में 40 फीसदी अभिभावक इन योजनाओं के बारे में नहीं जानते हैं। वे अभिभावक जो इन योजनाओं के बारे मंे नहीं जानते हैं उनमें हर 10 में से 9 अभिभावक आन्ध्रप्रदेश और हरियाणा से हैं। इसका अर्थ है कि अगर उन्हें इन योजनाओं के बारे में जानकारी दी गई होती, तो उन्होंने इनका फायदा ज़रूर उठाया होता।

क्राई की सीईओ पूजा मारवाह के अनुसार ‘‘इससे पता चलता है कि लड़कियों की स्कूली शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं के बावजूद इनके फायदे लड़कियों तक नहीं पहुंचते। योजनाओं के बारे में जानकारी एवं जागरुकता की कमी के चलते ज़्यादातर लड़कियां इनसे लाभान्वित नहीं हो पातीं।’’

हालांकि, राज्यवार विश्लेषण की बात करें तो बिहार में 74 फीसदी और गुजरात में 88 फीसदी अभिभावक लड़कियों की शिक्षा के संदर्भ में इन योजनाओं के बारे में जानते हैं, किंतु आन्ध्रप्रदेश में मात्र 20 फीसदी अभिभावक ही इन योजनाओं के बारे में जानते हैं।

लड़कियों की शिक्षा से जुड़ी विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी का विश्लेषण करने पर पाया गया कि कुछ राज्यों की ‘मुख्यमंत्री साइकल योजना’ और केन्द्र सरकार की ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना चारों राज्यों के अभिभावकों में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है।

हालांकि योजनाओं की उपयोगिता की बात करें तो अध्ययन से पता चला है कि ज़्यादातर मामलों में वितरण में देरी के चलते लड़कियां इन योजनाओं से लाभान्वित नहीं हो पातीं, इसके अलावा सख्त योग्यता मानदण्डों एवं नियमों-शर्तों तथा जटिल प्रक्रिया के चलते इन योजनाओं के फायदे लड़कियों और उनके परिवारों तक नहीं पहुंच पाते। साथ ही अध्ययन से यह भी पता चला है कि इन योजनाओं से लाभान्वित नहीं होने वाली ज़्यादातर लड़कियां 11-14 आयुवर्ग की हैं और निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्ग से ताल्लुक रखती हैं।

अध्ययन के परिणामों पर बात करते हुए पूजा मारवाह ने कहा, ‘‘प्रोत्साहन योजनाओं की उपयोगिता बढ़ाने के लिए यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि इन्हें समय पर लागू किया जाए। नीतिगत प्रावधानों के माध्यम से योजनाओं की उपयोगिता को बढ़ाना बेहद ज़रूरी है जैसे सुरक्षित परिवहन सुविधाएं, आरटीई के तहत प्रावधान; सामाजिक व्यवहार में बदलाव और लड़कियों की स्थिति में सुधार के लिए संचार को प्रोत्साहित करना, क्रैच सुविधाओं की उपलब्धता बढ़ाना आदि।’’