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मनरेगा को कमजोर करके गरीबों मजदूरों के हितों पर कुठाराघात कर रही सरकार

(मुश्ताक़ अली अन्सारी)

जब हम गावों के हालात पर नजर डालते हैं तो देखते हैं कि गांवो में मुख्यतया दो ही काम हैं एक किसानी दूसरा मजदूरी कुछ लोग फेरी लगाकर धनिया मिर्चा कपड़े आदि बेंच कर जीवन यापन करते हैं सत्तर फीसदी किसान दो एकड़ से कम जमीन के मालिक हैं और एक एकड़ या उससे कम जमीन वाले किसान और भूमिहीन मजदूर गांवों में खेती किसानी के काम के बाद बेरोजगार ही रहते थे उनमें से कुछ भवन निर्माण के कार्य में जुड़े होते हैं 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना आयी तो गांवों के सीमांत किसानोंऔर भूमिहीन मजदूरों के लिये लाइफ लाइन का काम किया भृष्टाचार की तमाम बुराइयों के बावजूद अब तक कि सबसे कामयाब योजना थी क्योंकि यह काम के अधिकार और मांग आधारित योजना है ।परंतु पिछले 4वर्षों में मजदूरी भुगतान की लेटलतीफी ने इस योजना से मजदूरों को निराश किया है एक बार विपक्ष में रहते हुए बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में मनरेगा की तारीफ़ों के पुल बांधे थे तो उन्हीं की पार्टी के नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस योजना को असफलता का पिटारा कह कर मजाक उड़ाया और गाजे बाजे के साथ जारी रखने की बात कही लेकिन वो बात भी जुमले सी हो गयी जब मजदूरों को काम करने के15 दिन में भुगतान मिलने के बजाय 2से 3 माह बाद मजदूरी का भुगतान हो रहा है वह भी तब जब जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (NApm) ने देश भर में अभियान चला कर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बकाया मजदूरी न देने के आरोप में थानों में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए प्रार्थना पत्र देने शुरू कर दिया भारत सरकार की मनरेगा वेबसाइट पर उपलब्ध आंकडो के अनुसार मोदी सरकार ने-

मनरेगा मजदूरों की 800 करोड़ बकाया मजदूरी के सापेक्ष मात्र 171करोड़ रुपये ही दिये

योजना से जुड़े सामाजिक लेखा परीक्षा समन्वक धनीराम कहते हैं
मनरेगा योजना भले ही आमतौर पर अपनी अव्यवस्थायों व अनियमितताओ को लेकर सुर्खियों में रहती हो लेकिन इन सबके बावजूद मनरेगा का जो असली सच और निष्कर्ष है वह बेहद सुखद है
क्योंकि इस योजना से कई पहलुओं पर विकास हुआ है कई गरीब किसानों की मनरेगा से तकदीर बदल गयी है जिन किसानों की जमीन थी पर उपजाऊ नही थी सिचाई के साधनों के अभाव में असिंचित पड़ी रहती थी आज उनकी असिंचित जमीनों को मनरेगा ने सिंचित बना दिया है गरीब किसानों के खेतों पर मनरेगा के तहत सिंचाई कूप के खुद जाने से अब वही असिंचित जमीन सिंचित बन गई है उन पर भरपूर फसलों की पैदावार होने लगी है जिससे वह किसान समृद्ध बनने लगे हैं, ठीक इसी प्रकार मनरेगा ने ग्रामीण विकास अन्य कई पहलुओ पर भी विकास किया है चाहे वह बस्ती में नाली निर्माण हो या खरंजा निर्माण ,सी0सी0 रोड निर्माण हो या शौचालय आदि कई तरह के कार्यो को मनरेगा से कराया जा रहा है

मनरेगा से कराये गए लिंक रोड निर्माण से कई बस्तियो को आपस मे जोड़ा जा सका है तो वही किसानों को खेतों पर पहुचने के लिए सेक्टर मार्गो का निर्माण मनरेगा से कराया गया है।
जल संचयन एवं संवर्धन के क्षेत्र में तो मनरेगा से अद्भुत प्रयास किये गए हैं जो आज सफलता की कहानियों में तब्दील होते नजर आते हैं।

खेतों पर बंधी निर्माण, चेक डैम निर्माण तालाब खुदाई आधी इन कार्यों के हो जाने से बरसात के जल का संचयन होना संभव हो पाया है जिससे बुंदेलखंड जैसे पिछड़े क्षेत्र में जहां गिरता भूजल स्तर एक बहुत बड़ा संकट पैदा हो गया था वहां इससे जलस्तर को नियंत्रित करने में बहुत बड़ी सफलता मिली है…मनरेगा ने इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए बहुत ही कारगर प्रयास किए हैं।

सरकार द्वारा मनरेगा को हाईटेक बनाने के लिए नए नए तरीके अपनाये जा रहे हैं व भुगतान प्रक्रिया को आसान बनाने के प्रयास हो रहे हैं जो सराहनीय हैं किन्तु….
इतने युद्धस्तर पर हुए विकास कार्यो के चलते भी मनरेगा को आमतौर पर बुरा ही कहा जा रहा है, मनरेगा को बदनाम और बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार विभागीय जनो को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है उनकी मंशा पर सवाल खड़े हो रहे है

क्योंकि

१-मनरेगा में पिछले 2-3 वर्षों से भुगतान प्रक्रिया हद से ज्यादा प्रभावित हुई है भुगतान विलंबित होने की स्थिति2 से 4 महीने तक पहुंच गई है।

२-सामग्री भुगतान प्रक्रिया प्रभावित होने से सैकड़ो परियोजनाएं अपूर्ण पड़ी है।

३-आधार बेस्ड भुगतान मजदूरों को तमाम खामियों के चलते सहूलियत की बजाह आफत बना है।

४-मजदूरों को 3-4 माह तक मजदूरी नही मिल पा रही है।

५-मनरेगा कार्मिको की बदहाली पर ठोस निर्णय नही लिया जा रहा है।

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