लखनऊ: रिहाई मंच ने योगी और मोदी सरकारों पर पुलवामा आतंकी हमले से देश में उमड़े दुख और सदमे के माहौल का राजनैतिक इस्तेमाल किये जाने पर कड़ा एतराज जाहिर किया. आरोप लगाया कि आतंकी हमले के बहाने देशभक्ति की उजड्ड परिभाषा गढ़ी जा रही है और उसके उन्मादी चाबुक से पूरे देश को हांके जाने की फिजा तैयार की जा रही है. इससे असहमत लोगों पर देश विरोधी ठप्पा लगा कर उन्हें डराया-धमकाया जा रहा है और उन्हें कटघरे में खड़ा किया जा रहा है. इसी कड़ी में अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों की भी घेराबंदी की जा रही है. यह देश की एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा है, देश को असुरक्षित और अस्थिर करने की कोशिश है.

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि बाराबंकी के वरिष्ठ अधिवक्ता और अपने मुखर विचारों के लिए जाने जानेवाले रणधीर सिंह सुमन के ख़िलाफ़ संघ गिरोह से जुड़े वकीलों ने मोर्चा खोला और उन पर रासुका के तहत कार्रवाई किये जाने की मांग की. आतंकी हमले के बाद सुमन ने कई मौकों पर पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उससे व्यापारिक रिश्ते समाप्त कर उसकी आर्थिक रीढ़ तोड़ देने की वकालत की थी. वहीं दूसरी ओर गोंडा से विश्व हिन्दू परिषद के एक देश विरोधी नारे वाले वायरल वीडियो पर पुलिस के खंडन की तत्परता देखने योग्य ही नहीं प्रवक्ता की भूमिका जैसी रही. पुलिस की यही भूमिका बुलंदशहर में अपने इंस्पेक्टर की हत्या के बाद हिंदुत्वादी संगठनों के नाम न लेने की थी. पर उसी पुलिस को गाजीपुर में सिपाही की हत्या में निषाद पार्टी का नाम लेने में कोई झिझक नहीं है.

बहराइच के जरवल कस्बे में आतंकी हमले के ख़िलाफ़ जुलूस निकला जिसमें दोपहिया वाहनों का गैराज चला रहे जियाउद्दीन उर्फ़ बच्छन ने भी शिरकत की और सबके साथ पाकिस्तान और आतंकवाद के ख़िलाफ़ मुर्दाबाद के नारे भी लगाए. लेकिन तुरंत बाद लिखी अपनी एक फेसबुक टिप्पणी के चलते उसे जेल पहुंचा दिया गया.

इसी तरह अपनी फेसबुक टिप्पणी को लेकर बलिया के ब्रजेश यादव संघ परिवार की निगाह में देशद्रोही हो गए. उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खुल गया और उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज किये जाने की मांग उठ गयी. राजनीति के कारपोरेटीकरण के इस दौर में चुनावी हथकंडों का गिरता स्तर कोई अचरज की बात नहीं. आतंकी हमले को लेकर इस तरह की शंका व्यक्त करना नागरिक दायित्व का पालन क्यों नहीं माना जा सकता. लेकिन मौजूदा सरकार अपने ऊपर उठी ऊंगलियों को देशविरोधी गतिविधि मानती है जो कहीं से भी लोकतांत्रिकता के दायरे में नहीं आता.

रिहाई मंच नेता रॉबिन वर्मा ने ऐसी तमाम कार्रवाइयों को आरएसएस की अगुवाई में अभिव्यक्ति की आजादी को बंधक बनाए जाने की साजिश के नए अध्याय का ताजा नमूना करार दिया. पुलवामा हमले के ख़िलाफ़ पूरे देश में लोगों ने दुख और गुस्से का इजहार किया. ख़ास बात यह कि अधिकतर जगहों पर इन प्रदर्शनों के जरिये रोजी-रोटी की तलाश में देश के तमाम हिस्सों में भटक रहे कश्मीरियों पर निशाना साधा गया. आतंकी हमले के विरोध के नाम पर मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में हुड़दंगी जुलूस निकाले गए और आपत्तिजनक नारे लगाए गए. इस तरह आम मुसलमानों की देशभक्ति को तौला गया और उनके धीरज की परिक्षा ली गयी.

रिहाई मंच नेता शाहरुख अहमद इन घटनाओं को संघ प्रायोजित बताते हुए कहा कि यह सिलसिला नहीं थमा तो वंचित-उपेक्षित समुदायों में नागरिकता से बाहर कर दिए जाने का बोध जड़ जमाएगा और यह स्थिति लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होगी. इसी कड़ी में देशभक्त और जनपक्षधर लोगों और समूहों से अपील की कि वे असहमति या असंतोष व्यक्त करने के बुनियादी अधिकार की हिफाजत के लिए एकजुट हों और देश की एकता को तोड़ रहे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को तगड़ी चुनौती दें.