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लाखों आदिवासी परिवारों की वनभूमि से बेदखली रोकने के लिए सरकार तत्काल पहल करे : माले

लखनऊ: भाकपा (माले) ने वनों में निवास करने वाले 11 लाख से ज्यादा आदिवासी-वनवासी परिवारों को बेदखल करने के सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले को लेकर प्रदेश व केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल खड़ा किया है। पार्टी ने मांग की है कि न्यायालय के आदेश के चलते जंगलों से करीब एक करोड़ की जनसंख्या को बेदखल होने से रोकने के लिए सरकार अविलंब उपचारात्मक कार्रवाई करे और अध्यादेश लाये।

पार्टी राज्य सचिव सुधाकर यादव ने रविवार को जारी बयान में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में संबंधित मामले की अहम सुनवाई के दिन (गत 13 फरवरी को) केंद्र सरकार के वकील की अनुपस्थिति और फिर फैसले पर सरकार की चुप्पी से संदेह पैदा होता है। वह यह कि केंद्र सरकार वन अधिकार कानून 2006 और जंगलों में आदिवासियों के निवास के अधिकार को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के साथ अंदरखाने मिली हुई है। केंद्र का यह व्यवहार आदिवासियों-वनवासियों के प्रति राजग सरकार की संवेदनहीनता और कारपोरेट के प्रति पक्षधरता को दर्शाता है। क्योंकि कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने और उसका दोहन करने के लिए हमेशा से ही आदिवासियों की जंगलों से बेदखली के पक्ष में रही हैं।

माले नेता ने कहा कि वन भूमि पर पीढियों से रह रहे लाखों परिवारों की 16 राज्यों में आसन्न बेदखली किसी मानवीय विपदा से कम नहीं होगी। वन भूमि न सिर्फ वहां रहने वाले परिवारों को आवास मुहैया कराती है, बल्कि वह आजीविका का भी साधन है, जिसपर निर्भर होकर वे पुश्तों से गुजारा करते आ रहे हैं। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण और निराशाजनक बताते हुए कहा कि वन अधिकार कानून 2006 तो आदिवासियों को वन भूमि पर रिहायश समेत जीवन यापन करने का अधिकार देने के लिए बना था। यह विडंबना ही है कि उसी कानून को उन्हें बेदखल करने के लिए आधार बनाया जा रहा है।

राज्य सचिव ने कहा कि यह मिथक है कि आदिवासियों-वनवासियों के निवास करने से जंगल नष्ट होंगे। जबकि सच्चाई ठीक इसके विपरीत है। वनों से सम्बंधित अध्ययन इस बात के प्रमाण हैं कि परम्परागत निवासियों के रहने से ही जंगल सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि यह मिथक गढ़ने के पीछे कारपोरेट की शक्तियां हैं, जो तथाकथित विकास की आड़ में वनों को नष्ट करने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं।

माले नेता ने कहा कि आदिवासियों-वनवासियों के खिलाफ न्यायालय से इस तरह का आदेश पारित होने के लिए मोदी सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है। देश के लिए अच्छे दिन का वादा तो धरा रह गया, गरीबों-आदिवासियों के लिए अकल्पनीय व सबसे बुरे दिन सामने हैं। उन्होंने कहा कि इस आदेश से यूपी के सोनभद्र, मिर्जापुर, नौगढ़ (चंदौली), लखीमपुर खीरी, पीलीभीत समेत कई जिलों में वनभूमि पर रहने वाले आदिवासी-वनवासी परिवार भी प्रभावित होंगे। योगी सरकार को भी इसपर ध्यान देना चाहिए। लाखों परिवारों के विस्थापन व आजीविका से जुड़ी समस्या की विकरालता और भयावहता को देखते हुए केंद्र की सरकार न्यायालय के आदेश को लागू होने से रोकवाने के लिए तत्काल कार्रवाई करे और अध्यादेश लाये।

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