नई दिल्ली: नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने शुक्रवार को रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र से अलग एक स्वतंत्र ऋण प्रबंधन कार्यालय की स्थापना की जोरदार वकालत करते हुए कहा कि 'इस विचार को अमल में लाने का समय आ गया है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने फरवरी, 2015 में अपने बजट भाषण में वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली सार्वजनिक ऋण प्रबंधन एजेंसी (पीडीएमए) के गठन का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, यह प्रस्ताव अब तक लागू नहीं हो सका।

नीति आयोग की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कुमार ने कहा कि इस खास कार्यालय को अलग करना जरूरी है, क्योंकि इसके बाद आप सार्वजनिक ऋण प्रबंधन पर अधिक ध्यान दे पाएंगे। इससे सरकार को अपने ऋण की लागत में कमी लाने में मदद मिलेगी।

वर्तमान में बाजार से ऋण लेने सहित अन्य सरकारी कर्जे का प्रबंधन रिजर्व बैंक करता है। कुमार ने कहा कि सरकार को इस बाबत फैसला करना है कि किस प्रकार आरबीआई की जिम्मेदारियों को बांटा जाए।

उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति का लक्ष्य तय करने का वैधानिक अधिकार रिजर्व बैंक को देना सरकार का साहसिक फैसला है। उनकी कहा, "ऐसे में देश में वृद्धि, रोजगार, ऋण और अन्य कानूनी चीजों को कौन देखता है? मेरे ख्याल से इन चीजों पर गौर किये जाने की जरूरत है।

पीडीएमए के गठन का विचार हितों के टकराव को दूर करने के चलते सामने आया है। क्योंकि आरबीआई प्रमुख ब्याज दर पर फैसला करता है। इसके अलावा वह सरकारी बॉन्डों की खरीद और बिक्री भी करता है। बैंकिंग क्षेत्र की ओर इशारा करते हुए कुमार ने कहा कि भारत को वैश्विक आकार के बैंक चाहिए जो इस बड़ी अर्थव्यवस्था का फायदा उठा सकें।

उन्होंने कहा कि भारत का सबसे बड़ा बैंक दुनिया में 60वें स्थान पर आता है और वैश्विक वित्तीय बाजारों में आपकी स्थिति को मजबूत नहीं करता है। कुमार ने कहा कि मेरे ख्याल से हमें कुछ बड़े बैंक चाहिए जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा दे सकें निवेश आकर्षित कर सकें।" उन्होंने कहा कि पूंजी डालने या बैंकों के विलय के जरिए ऐसा संभव है।