लखनऊ: कॉउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा आज विमोचित की गई एक रिसर्च-रिपोर्ट के नतीजों के अनुसार उत्तर प्रदेश में केवल 39 प्रतिशत घर ही ऐसे हैं, जहाँ मीटर लगा है और बिलिंग के बाद बिजली उपभोग का भुगतान किया जाता है। ‘सौभाग्य’ योजना के तहत उत्तर प्रदेश में 100 प्रतिशत घरों का विद्युतीकरण होने के पश्चात वितरण कम्पनियों (डिस्कॉम्स) पर बड़ा वित्तीय भार आ सकता है, जिसका मुख्य कारक खराब मीटरिंग, अनियमित बिलिंग तथा वसूली में अदक्षता जैसी समस्याएँ हैं। इन खामियों की वजह से डिस्कॉम्स को हो रही हानि ‘हार्ड थेफ्ट’ यानी प्रत्यक्ष चोरी – जैसे कटिया चोरी, अनाधिकृत बिजली का इस्तेमाल और मीटर से छेड़छाड़ – से होने वाली हानियों की तुलना में कहीं ज्यादा है। शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन (एसएसईएफ) द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त, यह रिपोर्ट एक उपभोक्ता सर्वेक्षण के नतीजों पर आधारित है। इसे लखनऊ में बिजली सुधार के भावी मुद्दों पर केंद्रित एक परिचर्चा ‘बियॉन्ड सौभाग्य : नेक्स्ट स्टेप्स फॉर पावर सेक्टर रिफॉर्म्स इन यूपी’ में मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (एमविविएनएल) के निदेशक (वाणिज्य) श्री ब्रह्म पाल और उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (यूपीईआरसी) के निदेशक (वितरण) श्री विकास चंद्र अग्रवाल द्वारा विमोचित किया गया।

इस सर्वेक्षण को वर्ष 2018 के मध्य में उत्तर प्रदेश के 90 वार्डों (शहरी) व 90 गाँवों के 1800 घरों में ‘इनीशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी’ (आईएसईपी) के सहयोग से संचालित किया गया। इसमें दस जिलों-अलीगढ़, अंबेडकर नगर, बांदा, बलिया, बदायूं, कौशांबी, मऊ, मुरादाबाद, मुज़फ्फरनगर और सुल्तानपुर को शामिल किया गया। ये जिले उत्तर प्रदेश की पाँच बिजली वितरण कम्पनियों में से चार के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। सीईईडब्ल्यू का अध्ययन डिस्कॉम्स के समक्ष एक ‘पॉलिसी रोडमैप’ भी प्रस्तावित करता है, ताकि राज्य में चौबीसों घंटे-सातों दिन बिजली सुनिश्चित करने से जुड़ी कार्यनीतियों को प्राथमिकतावार क्रमबद्ध किया जा सके।

इस मौके पर मुख्य अतिथि श्री ब्रह्म पाल निदेशक (वाणिज्य), एमविविएनएल ने कहा कि ‘‘मैं उत्तर प्रदेश के बिजली क्षेत्र के गवर्नेंस में उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने के लिए सीईईडब्ल्यू और एसएसईएफ के प्रयासों की सराहना करता हूँ। उपभोक्ताओं की संतुष्टि और जागरूकता के स्तर को समझने के लिए ऐसे सर्वेक्षणों की ज़रूरत पड़ती है। इनके नतीजे उपभोक्ताओं में बिजली बिल, टैरिफ ऑर्डर्स, बिजली चोरी को रोकने और डिस्कॉम्स की वित्तीय सेहत संबंधित जागरूकता लाने के लिए आवश्यक कार्यनीतियाँ तैयार करने में उपयोगी हो सकते हैं।’’

अपने विशेष-वक्तव्य में उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (यूपीईआरसी) के निदेशक (वितरण), श्री विकास चंद्र अग्रवाल ने कहा कि ‘‘उत्तर प्रदेश के उपभोक्ताओं में असंतोष का मुख्य कारण अनियमित और त्रुटिपूर्ण बिलिंग है। सीईईडब्ल्यू द्वारा संचालित सर्वेक्षण तकनीकी इस्तेमाल से बिलिंग में बेहतरी ला कर उपभोक्ताओं के संतुष्टि स्तर में सुधार की सिफारिश करता है। इससे मानवीय त्रुटियों में कमी आएगी और एक दक्षतापूर्ण, नियमित और समयबद्ध बिलिंग प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा। मेरे विचार से इस सर्वेक्षण के नतीजे वितरण कम्पनी और नियामक आयोग, दोनों के लिए मददगार हैं, क्योंकि ये उपभोक्ताओं के नज़रिए और डिस्कॉम्स की भावी दिशा पर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि उपलब्ध कराते हैं।’’

इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक और सीईईडब्ल्यू में रिसर्च फेलो श्री कार्तिक गणेसन ने कहा कि ‘‘उत्तर प्रदेश के समक्ष इलेक्ट्रिसिटी वैल्यू चेन में विभिन्न स्तरों पर वैविध्य क्षमता के साथ एक विशाल तंत्र के सुचारू प्रबंधन व संचालन की कठिन चुनौतियाँ हैं। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में केवल 19 प्रतिशत मीटर लगे घरों तक नियमित बिल पहुँचता है और वे समय पर पूरा बिल का भुगतान करते हैं। 100 प्रतिशत घरों में विद्युतीकरण के संदर्भ में नीति-निर्माताओं को एक सतत तौर पर राजस्व वसूली और बिजली आपूर्ति की अवधि व गुणवत्ता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। साथ ही उपभोक्ताओं तक यह बात प्रसारित करना उतना ही ज़रूरी है कि डिस्कॉम्स अपनी लागत-वसूली तथा सेवा-वितरण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा अध्ययन उत्तर प्रदेश में डिस्कॉम्स-कंज्यूमर रिश्ते तथा उपभोक्ताओं के लिए आपूर्ति सम्बंधी परिणामों में इसकी अभिव्यक्ति को समझने में मदद देता है।’’

बिजली आपूर्ति और उपभोक्ताओं की संतुष्टि

सभी लोगों तक चौबीसों घंटे-सातों दिन बिजली उपलब्ध कराने की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से प्रेरित बिजली क्षेत्र में शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाकों में बिजली आपूर्ति की अवधि में पर्याप्त सुधार देखने में आया है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति की अवधि क्रमशः 17 घंटे और 12 घंटे तक सुधर गई। 83 प्रतिशत शहरी उपभोक्ता और 63 प्रतिशत ग्रामीण उपभोक्ता डिस्कॉम्स द्वारा सूर्यास्त के बाद मिल रही बिजली आपूर्ति की सेवा से संतुष्ट थे।

मीटरिंग और बिलिंग

बिना मीटर के कनेक्शनों से बिजली उपभोग की जवाबदेही घटती है और ये राज्य में डिस्कॉम्स की हानियों को बढाने में योगदान देते हैं। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी सामने आया कि राज्य में केवल 45 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों और 90 प्रतिशत शहरी परिवारों के यहां मीटर लगा है। ग्रामीण इलाकों में मीटर वाले उपभोक्ताओं की सबसे कम हिस्सेदारी पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के क्षेत्र में है।

उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (यूपीईआरसी) के अनुसार, उत्तर प्रदेश के पाँचों डिस्कॉम्स में बिना मीटर वाले ग्रामीण घरों का बिजली उपभोग राज्य के कुल घरेलू उपभोग का 36 प्रतिशत है। परंतु बिना मीटर वाले इन ग्रामीण घरों से अपेक्षित राजस्व कुल घरेलू उपभोग से अपेक्षित राजस्व का केवल 8 प्रतिशत था। ऐसे में डिस्कॉम्स को मीटर की थोक खरीद, स्मार्ट मीटर की टेस्टिंग, प्रोडक्ट और टेक्नोलॉजी स्टैंडर्डाईजेशन और मीटर लगाने के फायदों के प्रति उपभोक्ताओं में जागरूकता फैलाने आदि कदमों पर अधिकाधिक ध्यान देना चाहिए।

सीईईडब्ल्यू के अध्ययन ने यह भी पाया कि नियमित बिलिंग डिस्कॉम्स और उपभोक्ता के बीच एक विश्वास का सम्बंध स्थापित करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। मासिक बिल प्राप्त नहीं करने वाले करीब 77 प्रतिशत ग्रामीण उपभोक्ताओं को और 40 प्रतिशत शहरी उपभोक्ताओं को यह विश्वास ही नहीं है कि उनका बिल मीटर पर आधारित है। वहीं नियमित बिल प्राप्त करने वाले उपभोक्ताओं में 57 प्रतिशत समय पर बिल भुगतान की संभावना देखी गई और 72 प्रतिशत पूरे भुगतान की संभावना देखी गई, बजाए उन उपभोक्ताओं के जिनकी नियमित बिलिंग नहीं हुई। ऐसे में उपभोक्ताओं के बीच विश्वास बनाए रखने के लिए डिस्कॉम्स को मासिक बिलिंग को अपनाने, कार्यशील पूंजी प्रवाह में सुधार लाने और गरीब परिवारों पर बकाया बिल के वित्तीय भार को कम करने की ठोस व्यवस्था करनी चाहिए। बिजली बिल में उपभोक्ताओं को बिल की राशि के निर्धारण, हाल में किए गए भुगतान तथा बकाया बिल आदि का समुचित विवरण देकर जागरूक बनाए रखना चाहिए।

बिजली की चोरी पर उपभोक्ताओं की धारणा

डिस्कॉम्स के कामकाज व संचालन में ढुलमुल रवैया और उपभोक्ताओं में जागरूकता का अभाव, दोनों ‘सॉफ्ट थेफ्ट’ यानी निहित रूप की चोरी (समुचित मीटरिंग व बिलिंग का अभाव और बकाया राशि के संग्रह में त्रुटियों के कारण होने वाली हानि) के लिए जिम्मेवार हैं। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन के अनुसार 84 प्रतिशत ग्रामीण और शहरी उपभोक्ताओं को कटिया से बिजली की चोरी अस्वीकार्य है। लेकिन इनमें से 52 प्रतिशत ने माना कि कटिया करने पर किसी व्यक्ति को सज़ा या दंड के तौर पर कोई जुर्माना भरने या जेल भेजने के बजाए केवल चेतावनी देकर छोड़ देना चाहिए। केवल 5 प्रतिशत ने माना कि कोई गंभीर दंड देना चाहिए। मीटर लगाए उपभोक्ताओं के बीच बिना मीटर वाले अन्य उपभोक्ताओं के मुकाबले कटिया को लेकर कम स्वीकार्यता थी। इस संदर्भ में सीईईडब्ल्यू का अध्ययन यह सिफारिश करता है कि उपभोक्ताओं एवं डिस्कॉम्स के बीच बेहतर रिश्ते के लिए और बिजली चोरी के विविध रूपों के कारण होने वाली हानियों के प्रति उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए समुचित कदम उठाना चाहिए और उनसे अपील करनी चाहिए कि वे सभी तक बिजली सुविधा पहुँचाने के कार्य में सहयोगी की भूमिका निभाएं। साथ ही नियमों का अनुपालन नहीं करने वाले लोगों तथा बिजली चोरी के प्रमुख इलाकों को लक्षित करके विशेष निगरानी करने वाली टीमों का गठन करना चाहिए, ताकि बिजली चोरी पर अंकुश लग सके।

इस रिपोर्ट की सह-लेखिका तथा सीईईडब्ल्यू में रिसर्च एनालिस्ट सुश्री कनिका बालानी ने बताया कि ‘सिस्टम सम्बंधी अदक्षताओं व त्रुटियों की भरपाई उपभोक्ताओं से या तो प्रत्यक्ष रूप से उनके बिजली बिल में या परोक्ष रूप से करारोपण (टैक्स) के रूप में की जाती है। इसी टैक्स की वसूली डिस्कॉम्स के वित्तीय कायाकल्प के लिए योजनाओं तथा सब्सिडी लागू करने में सहायक होती हैं। ‘प्रत्यक्ष चोरी (हार्ड थेफ्ट) और निहित चोरी (सॉफ्ट थेफ्ट)’ उपभोक्ताओं के लिए शुरूआत में लाभदायक दिखते हैं, परंतु दोनों किसी ना किसी रूप में आखिरकार उन पर वित्तीय बोझ लादते हैं। स्थिति प्रायः बिगड़ती है, जब उपभोक्ता अपने बिजली बिल को भी समझने में असमर्थ होता है। इस संदर्भ में सीईईडब्ल्यू बिजली क्षेत्र के कामकाज पर प्रभावी उपभोक्ता निगरानी व चौकसी के लिए उपभोक्ताओं को शिक्षित व जागरूक रखने की दिशा में कार्यरत है।’’