नई दिल्ली: वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि को लागू करने का प्रस्ताव रखा है. जिसको लेकर कुछ विशेषज्ञों की राय है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें नकद सहायता देने की योजना को लागू करने में कानूनी और अन्य प्रकार की अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है.

आम चुनाव से पहले वित्तीय तंगी से गस्त किसानों को लुभाने के लिए, केंद्र ने दो हेक्टेयर तक की जोत वाले वालों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की प्रत्यक्ष आय सहायता देने की घोषणा की है. केंद्र ने कहा था कि इससे 12 करोड़ किसान लाभान्वित होंगे और सरकारी खजाने पर सालाना 75,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी.

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील एन के पोद्दार ने यहां 'मर्चेन्ट्स चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में कहा कि प्रति परिवार 6,000 रुपये की राशि पर्याप्त है या नहीं, या यह निर्णय समझदारी भरा है या नहीं, इस बात को छोड़ भी दें तो भी इस योजना को लागू करते समय कुछ विषय उठ सकते हैं. स्वामित्व को लेकर उच्चतम न्यायालय के हाल के फैसले के बाद इसमें कानूनी बाधाएं भी आ सकती हैं.

जादवपुर विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सैकत सिन्हा रॉय की आशंका है कि इस योजना में दी जाने वाली 75,000 करोड़ रुपये का अधिकांश हिस्सा 'अनुत्पादक तथा दिखावे के कामों में' खर्च किया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी राशि कृषि के लिए जरूरी साधनों पर अथवा कृषि उपजों की ऊंची कीमत दिलाने पर खर्च की जाती तो इसका कहीं अधिक आर्थिक लाभ हो सकता था. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया है कि मिल्कियत के दस्तावेज में केवल की का नाम भर दर्ज होने से ही कोई भूस्वामी नहीं बन जाता. कानूनी चुनौती उठने पर दावे खड़े हो सकते हैं.

पोद्दार ने कहा कि दूसरी तरफ, अगर जमीन के एक प्लॉट में एक से अधिक मालिक हों तो क्या एक ही जमीन के लिए सभी को 6,000 रुपये मिलेंगे? ऐसे में क्या होगा? पोद्दार ने कहा, "प्रत्येक परिवार को 2,000 रुपये की पहली किश्त को स्थानांतरित करना भी चुनौतीपूर्ण होगा."