कांग्रेस पार्टी व गांधी परिवार ने आगामी लोकसभा चुनावों में अपने दल व परिवार का राजनीति के मैदान में अपना अस्तित्व बचा रखने के लिये आखिरकर अपना प्रियंका रूपी अंतिम कार्ड चल दिया है। कागे्रंस अध्यक्ष राहुल गांधी ने महागठबंधन की ओर से पूरी तरह से प्रधानमंत्री पद से नकारे जाने के बाद अपना यह तुरूप का अंतिम इक्का चल दिया है। जब प्रियंका की राजनीति के मैदान में इंट्री का ऐलान हो रहा था तब भारतीय जनता पार्टी केे सभी प्रवक्ताओं तथा कुछ राजनैतिक विष्लेषकों का भी यह अनुमान आ गया कि कांग्रेस ने राहुल गांधी को पूरी तरह से नाकाम मान लिया है तथा वह अकेले अपने दम पर कांग्रेस की डूबती नैया को पार नहीं लगा सकते तथा पूरा अनुमान एवं कुछ ज्योतिषियों के साथ विचार – विमर्ष के बाद ही बाद ही प्रियंका वार्डा को पूर्वी उत्तर प्रदेष का महासचिव बनाकर चुनाव के मैदान में उतारा गया है। प्रियंका के राजनीति में उतरते ही राजनैतिक सरगर्मी व बहसों तथा उनके बाद कांग्रेस के उठने वाले अन्य संभावित कदमों की ओर मुड़ जाना स्वाभाविक ही था।

प्रियंका के प्रत्यक्ष रूप से राजनेैतिक पारी शुरू करने के पीछे कई कारण माने जा रहे हंै। जिसमें पहला यह है कि राहुल गांधी अपने बलबूते पर मोदी व शाह की अब तक की अजेय जोड़ी को विधानसभा चुनावों में पराजित करने से लेकर , संसद में राफेल व ईवीएम जैसे मुददे पर घेरने में नाकाम रहे हैं। यहां तक कि संसद में पीएम मोदी से गले मिलने से लेकर आंख मारने तक की आदत के चलते वह जगहंसाई के ही पात्र बन जाते है जिसके कारण कांग्रेस के बने बनाये वोट बैंक पर भी असर पड़ जाता है। महागठबंधन में जिस प्रकार से गांधी परिवार को नकार दिया गया और फिर उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा तथा रालोद ने अपना गठबंधन तो बना लिया लेकिन इन दलों ने जिस प्रकार से कांग्रेस को केवल दो सीटों के ही लायक समझा था उसके बाद तो ऐसा लगने लग गया था कि क्या उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े राज्य में ही 2019 के लोकसभा चुनावों में अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी तो रायबरेली व अमेठी में ही गांधी परिवार को तगड़ी चुनौती देने की तैयारी कर रही थी ।वर्तमान समय में यदि देखा जाये तो कांग्रेस के पक्ष में पूरे भारत में नकारात्मक छवि ही सामने आ रही थी तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार जिस प्रकार से भ्रष्टाचार को लेकर हमलावर हो रही थी तथा अगस्ता सहित कई घोटालों में गांधी परिवार को बेहद दबाव में ला दिया था उन बेहद कठिन परिस्थितियों में प्रियंका का राजनीति के मैदान में उतरना जरूरी होे गया था लेकिन उसके लिये गांधी परिवार उपयुक्त अवसर व समय की तलाश कर रहा था । यही कारण है कि जब राजस्थान , छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जीत हो गयी तब उसके बाद जिस प्रकार से राहुल गांधी व कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल व जोश बड़ा है उसी को बरकरार रखने के लिये प्रियंका को चुनावी मैदान में उतारने के लिये ही सही समय समझा गया है। अभी राजनैतिक हलकों में प्रियंका किस सीट से चुनाव लड़ेंगी इस बात पर भी तरह- तरह की चर्चाआंे के दौर शुरू हो गये हैं। माना जा रहा हैं कि वह वाराणसी ,गोरखपुर या फिर रायबरेली , प्रयागराज व भोपाल की सीट से चुनाव मैदान में उतर सकती हैं। उत्तर प्रदेश में प्रियंका की इंट्री से यह साफ हो गया है कि अब प्रदेश में बहुकोणीय मुकाबला होने जा रहा है तथा सभी दलों के समीकरण बदल चुके हैं। प्रियंका की इंट्री तथा राहुल गांधी के फ्रंटफुट पर बल्ल्लेबाजी करने के फैसले के कारण यदि सबसे अधिक कोई बैचेन हुआ है तो वह है सपा ,बसपा और रालोद का गठबंधन। प्रियंका के चुनाव मैदान में आ जाने के बाद यह तय हो गया है प्रदेश के विभिन्न वर्गो तथा समाज का मतदाता सभी गठबंधनों में विभाजित हो जायेगा। प्रियंका वार्डा फिलहाल 2019 में तो कांग्रेस के लिये कोई कमाल नहीं करने जा रही हंै। रही बात सपा और बसपा गठबंधन की जिस प्रकार से सभी टी वी चैनलों में दिखाया जा रहा है कि यह गठबंधन प्रदेश में पचास सीटों पर अपनी विजय पताका फहराने जा रहा है अब उनके आपने गणित में भारी परिवर्तन होने जा रहा है। प्रियंका की प्रदेश की राजनीति में इंट्री में आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों में भी सपा और बसपा की वापसी पर भी गहरा प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
उत्तर प्रदेश के राजनैतिक समीकरणों में आगे आने वाले दिनों में प्रियंका का फैक्टर बहुत गहरा असर दिखाने वाला है तथा 2020 तक प्रदेश की राजनीति में अभूतपूर्व उथल -पुथल होने जा रही है। राजनैतिक उथल -पुथल के इस अभूतपूर्व दौर में परिवारवाद ,जातिवाद पर आधारित दल जैसे सपा और बसपा, रालोद सहित चाचा शिवपाल यादव की पार्टी , प्रतापगढ़ के राजा भैया जो सवर्णों का हितैषी बनकर राजनीति के मैदान में अपना भविष्य संवारने के लिये चुनावी मैदान में उतरे हैं। इन सभी दलों का अस्तित्व समाप्त होने जा रहा हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में आगे आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस के बीच ही जबर्दस्त राजनैतिक ध्रुवीकरण होने जा रहा है। प्रदेष की जनता बुआ -बबुआ तथा अच्छे
लड़कों के बीच बार -बार हो रहे गठबंधनों तथा इन दलों के कार्यकाल के दौरान हुए भयंकर आर्थिक घोटालों के चलते परेशान हो चुकी हैं तथा अब प्रदेश की जनता विकास और अपराधमुक्त सरकारों के साथ जीना चाह रही है।

प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को पटरी पर वापस लाने के लिये अभी प्रियंका को काफी मेहनत करनी होगी। प्रदेश के मुसलमान कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं तथा वह मानता है कि अयोध्या में विध्वंस कांग्रेस के कारण ही संभव हो सका था। सपाा और बसपा की सरकारों ने अभूतपूर्व मुस्लिम तुष्टीकरण के माध्यम से उनको अभी तक अपना बनाकर रखने में महारथ हासिल कर रखी है। प्रदेश की राजनीति में अभी कांग्रेस के पास ऐसा मुस्लिम नेता नही है जो कांग्रेस लिये अपनी बैटिग कर सके। इसी प्रकार दलित, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग सहित समाज के विभिन्न वर्गो से कांग्रेस को नये चेहरों की तलाष करना है। प्रदेश का सवर्ण मतदाता भी किसी समय कांग्रेस के ही पास जाता था लेकिन भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश में बेहद मजबूत स्थिति होने के बाद सवर्ण मतदाता भी कांग्रेस से बहुत दूर हो चुका है।

अभी प्रदेश के विभिन्न समाजो व धर्मो में अजीब सा मंथन शुरू हो गया है। उत्तर प्रदेष के बहुसंख्यक हिंदू जनमानस ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत के साथ लोकसभा में पहंुचाकर प्रधानमंत्री पद पर पहुंचाया तथा फिर उसके बाद 2017 मेें विधानसभा चुनावों में भाजपा गठबंधन 325 सीटें जीतकर सरकार बनाने में सफल रहा। प्रदेश का बहुसंख्यक समाज अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का सपना संजोयें है लेकिन न्यायिक प्रक्रिया की अनवरत बाधाओं के कारण भाजपा, संघ सहित हिंदू जनमानस व कार्यकर्ता में निराषा के गहरे बादल हैं। राम मंदिर निर्माण को लेकर हिंदू जनमनस का धैर्य जवाब दे रहा है।

अतः कांग्रेस पार्टी ने इन सभी परिस्थितियों को अपने लिये बेहद अनुकूल मानते हुए प्रियंका के रूप में तुरूप का इक्का चल दिया है। वह सोच रहा है कि भाजपा से नाराज चल रहा सवर्ण मतदाता का वोट उसे मिल जायेगा तथा अब मुस्लिम समाज का एकमुष्त मत भी उसे ही मिलेगा। प्रियंका की राजनीति में इंट्री में सपा और बसपा को अधिक नुकसान होने जा रहा है।

भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अखिलेश यादव के कार्यकाल की जांच शुरू करवाने में काफी विलम्ब कर दिया है। अब इन जांचों का कोई खास असर नहीं होने जा रहा है। भाजपा को अब अयोध्या में मंदिर केलिये कुछ किया जाना चाहिये तभी उसके हालात कुछ संभल सकते हैं नहीं तो उसका नाराज मतदाता का वोट बुरी तरह से विभाजित होने जा रहा है। तब प्रदेष की राजनीति का सियासी समीकरण पूरी तरह से गड़बड़ा जायेगा। यह बात तो तय हो गयी है कि प्रियंका की इंट्री से प्रदेश की राजनीति में सपा और बसपा ज्रैसे दलों की बोलती तो पूरी तरह से आगामी दिनों में बंद होने जा रही है। प्रियंका के कारण प्रदेश की राजनीति पर गहरा असर पड़ने वाला है।

मृत्युंजय दीक्षित

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