नई दिल्ली: असम में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर यहां के मूल स्वदेशी लोगों की नाराजगी कई तरह से सामने आ रही है। इस बीच श्रीमंत शंकरदेव संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मोरीगांव में आयोजित होने वाले अपने सबसे बड़े 88 वें धार्मिक अधिवेशन में नहीं बुलाने का निर्णय लिया है। असम में श्रीमंत शंकरदेव संघ की स्थापना 1930 में हुई थी, तब से संघ यहां धार्मिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के तौर पर काम करता आ रहा है। असम के जातीय जीवन में संघ की काफी मान्यता है।

संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि नागरिकता विधेयक को लेकर असम के लोग बेहद नाराज है, इसलिए संघ ने प्रधानमंत्री को अधिवेशन में नहीं बुलाने का निर्णय लिया है। इस अधिवेशन के लिए संघ की तरफ से जो निमंत्रण पत्र तैयार किया गया है उसमें मुख्य अतिथि के तौर पर प्रधानमंत्री के नाम का उल्लेख नहीं है।

संघ के नवनिर्वाचित पदाधिकारी कमलाकांत गोगोई कहते है, “असमिया जाती के साथ श्रीमंत शंकर देव संघ हमेशा खड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस अधिवेशन में बुलाने के लिए हमने पिछले साल सितंबर में उनके कार्यालय से संपर्क किया गया था। लेकिन उनके कार्यालय से कोई जवाब नहीं आया और इस बीच नागरिकता बिल को लेकर राज्य में हालात बदल गए। इसलिए हमने प्रधानमंत्री को अधिवेशन में नहीं बुलाने का ही निर्णय लिया है। असमिया जाति को बुरा लगे ऐसा कोई काम संघ कभी नहीं करेगा। इसलिए हम चाहते है कि प्रधानमंत्री अधिवेशन में उपस्थित ना रहें।”

इस संदर्भ में कमलाकांत गोगोई कहते है,”हमारे अधिवेशन से संबंधित कार्यसूचि प्रकाशित हो गई है। निमंत्रण पत्र में मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री का नाम जरूर है लेकिन इस परिस्थिति में हम चाहते है कि राजनेता भाग ना ले। लोग काफी नाराज है और अगर हम मुख्यमंत्री को बुलाते है तो उनका सम्मान रखना होगा। लेकिन इस परिस्थिति में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इसलिए इस बार के अधिवेशन में धर्मगुरुओं को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया है।”

श्रीमंत शंकर देव संघ भी नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रहा है। इस समय असम इस बिल के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन हो रहा है। प्रदर्शन कर रहे संगठन सड़क जाम करने से लेकर मुख्यमंत्री सोनोवाल को काले झंडे दिखाकर अपना विरोध जता रहें हैं। पिछले मंगलवार को नागरिकता संशोधन बिल, 2016 को लोकसभा से पास करवा लिया गया जिसके तहत अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। असम के मूल स्वदेशी लोगों को आशंका है कि पड़ोसी मुल्क से लाखों हिंदूओं को अगर यहां बसा दिया गया तो असमिया जाति, भाषा और उनकी संस्कृति पूरी तरह खत्म हो जाएगी। हालांकि अभी यह बिल राज्यसभा से पास होना बाकी है।

दरअसल इससे पहले 2015 में प्रधानमंत्री मोदी श्रीमंत शंकर देव संघ के अधिवेशन में भाग लेने आए थे। संघ ने अपने निमंत्रण पत्र में बतौर अतिथि राज्य के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और स्वास्थ्य मंत्री हिमंत विश्व शर्मा का नाम छपवा तो लिया है लेकिन अब वो चाहते है कि इस बार के अधिवेशन में कोई राजनेता उपस्थित ना रहें।