लखनऊ: पहले फरीदाबाद, फिर गुड़गांव और अब नोएडा के कारखानों में काम करने वाले अप्रवासी गरीब मजदूर मुस्लिम भाइयों को पार्क में शांतिपूर्ण तरीके से नमाज पढ़े जाने से रोकने की घटना दुःखद एवं असंवैधानिक है व साथ ही यह सरकार के साम्प्रदायिक व असंवेदनशील एजेंडे का विस्तार है। बीजेपी किसी न किसी रूप में हिंदू-मुस्लिम विवाद के मसलों को चर्चा में बनाए रखना चाहती है ताकि तबाह होते छोटे व मध्यम व्यापार और कानून व्यवस्था जैसे गंभीर मुद्दों पर मिल रही असफलता पर बहस ही न हो। मैं इसकी कड़े शब्दों में निंदा करता हूं व सरकार से यह मांग करता हूं कि इस संदर्भ में आज्ञा जारी करने वाले संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करे।

इस पूरे प्रकरण का दुःखद व निर्मम पक्ष यह भी है कि पुलिस ने नोएडा अथॉरिटी स्थित सभी कंपनियों को नोटिस भेजकर यह भी कहा है कि उनका कोई कर्मचारी अगर अथॉरिटी के पार्क में प्रार्थना करते देखा गया तो कंपनी जिम्मेदार होगी और उसपर कार्रवाई की जायेगी। यह न सिर्फ हमारे संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन है बल्कि यह इन गरीब मजदूरों के रोजगार और रोजी-रोटी पर भी हमला है। सरकारी तंत्र की मंशा पर सन्देह स्वाभाविक है कि वह किसी समुदाय विशेष के बारे में भय फैलाकर कारखाना मालिकों को इन मजदूरों के खिलाफ नकारात्मक सन्देश देना चाहती है। यह दुःखद है कि ’सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देने वाली भाजपा सरकार अब निजी आस्था पर हमला कर रही है।