नई दिल्ली: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हिंदी पट्टी के तीन राज्य हारने के बाद भारतीय जनता पार्टी को खासा नुकसान हुआ है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ) के आंकलन के मुताबिक भाजपा की मजबूत पकड़ वाले इन राज्यों की हार वजह अगड़ी जातियों का गुस्सा, पार्टी कैडर में उदासीनता और कुछ सरकारी नीतियां रहीं। संघ के भरोसेमंद सूत्र ने बताया कि एससी/एसटी एक्ट बहाल करने के लिए विधेयक, जिसे केंद्र द्वारा इसके कड़े प्रावधान लाने के लिए पारित किया, इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा से अगड़ी जातियां नाराज हो गईं। इससे मध्य प्रदेश में पार्टी की जीत की संभावनाओं का खासा नुकसान हुआ। इसमें पार्टी को सबसे ज्यादा नुकासन ग्वालियर-चंबल और मालवा क्षेत्र में हुआ। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र मे इस साल आठ लोगों की मौत के बाद दलित संगठनों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन हुए। यहां की कुल 34 सीटों में से पार्टी को महज सात सीटों पर जीत मिल सकी जबकि साल 2013 में आंकड़ा 21 था। बिल पास होने की वजह से छत्तीसगढ़ में भी ओबीसी वोटर नाराज हो गया।

फीडबैक में यह भी पता चला है कि मतदान में ‘नोटा’ का बटन दबाने की वजह से भी पार्टी को खासा नुकसान हुआ। इसके मतलब यह हुआ वोट डालने के बाद भी उस शख्स के वोट पार्टी के खाते में नहीं गया। हालांकि नोटा बटन दबाने वाले सभी लोगों को पार्टी से मोहभंग होने वाला करार नहीं दिया जा सकता। मध्य प्रदेश में नोटा की वजह से राज्य की कई सीटें प्रभावित हुईं। हालांकि दिल्ली में बैठे कई राजनेताओं का मानना है कि चुनाव में एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर की वजह से हार हुई। मगर पार्टी ने राजस्थान औ मध्य प्रदेश में अच्छी टक्कर दी। आरएसएस के मूल्यांकन में यह बात भी सामने आई कि तीनों राज्यों में भाजपा के मजबूत मुख्यमंत्री उम्मीदवार थे। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर भी नहीं थी। सूत्र के मुताबिक, ‘यहां कुछ मुद्दे थे, जैसे ग्रामीण संकट, जीएसटी अमल में लाने का तरीका, एससी/एसटी एक्ट, जिसे स्थानीय नेताओं ने नजरअंदाज किया।’