नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्त पड़ी रफ़्तार मोदी सरकार के लिए फजीहत का सबब बन सकती है। 2019 लोकसभा चुनाव सिर पर है और अर्थव्यवस्था पहले से ज्यादा धीमी गति से आगे बढ़ रही है। रॉयटर्स के एक सर्वे के मुताबिक जुलाई-सितंबर क्वार्टर में 7.4 फीसदी का ग्रोथ सालाना विकास दर के पैरामीटर पर कमज़ोर हो सकता है। जैसे-जैसे इलेक्शन की तारीख़ नज़दीक आती जाएगी विकास दर में कमी देखी जा सकती है। हालांकि, वर्तमान विकास दर चीन की तुलना में काफी बेहतर है। मगर, भारतीय अर्थव्यवस्था इससे पहले सितंबर के मुक़ाबले जून में धाकड़ प्रदर्शन कर चुकी है। पिछले दो सालों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए अर्थव्यवस्था ने जून क्वार्टर में 8.2 फीसदी का आंकड़ा छू लिया था।

इकोनॉमिक्स टाइम्स के मुताबिक वर्तमान वित्त वर्ष के दूसरे पड़ाव में विकास दर के और कम होने की संभावना है। एक्सपर्ट के हवाले से अख़बार ने बताया है कि यदि इस बीच कोई बड़ी राजनीतिक अनिश्चितता खड़ी होती है, तो यह सीधे-सीधे बाजार और व्यापार पर असर डालेगी।

ऐसा नहीं है कि वर्तमान में विकास दर कोई खराब है। लेकिन, मसला इसके लगातार नीचे गिरते हुए ट्रेंड को लेकर है। क्योंकि, भारत को इस वक्त 8 फीसदी से अधिक के विकास-दर की आवश्यक्ता है। 1 करोड़ 20 लाख के क़रीब युवा वर्ग हर साल नौकरी की मांग कर रहा है। यह मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती रही है। क्योंकि, 2014 लोकसभा चुनाव में भारी जीत हासिल करने के बाद सरकार नौकरियों को लेकर निशाने पर रही। मुंबई स्थित थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडिया इकॉनमी’ (CMIE) के मुताबिक अक्टूबर माह में बेरोजगारी दर 6.9 फीसदी के हिसाब से बढ़ी और यह पिछले दो सालों के मुकाबले ज्यादा थी।

विकास दर में कमी के पीछे कई और भी कारण हैं। इनमें मुख्य रूप से रुपये का कामज़ोर होना और बैंकों की ख़स्ता हालत ने व्यापार को मुंह के बल गिराया है। इन कारणों का निवेश और उपभोग पर बहुत बुरा असर पड़ा। टूरिज्म, गाड़ियों की सेल, इंडस्ट्रीयल प्रॉडक्शन जैसे सेक्टर निराशा करने वाले रहे हैं। हालांकि, विकास दर के संबंध में पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की भविष्यवाणी थोड़ी सुकून देने वाली है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मार्च तक देश की विकास दर 7.4 फीसदी होने की भविष्यवाणी की है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 6.7 फीसदी था।