लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक नेे आज डाॅ0 शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय, लखनऊ के अटल प्रेक्षागृह में संस्था ‘जस्प्रुडेन्शिया’ द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की स्मृति में आयोजित ‘महिला सशक्तीकरण एवं लिंग समानता’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर महिला कल्याण एवं पर्यटन मंत्री, डाॅ0 शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रवीर कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता आभा सिंह, संस्था के अध्यक्ष शुभम त्रिपाठी सहित बड़ी संख्या में विशिष्टजन व छात्र-छात्रायें उपस्थित थीं। राज्यपाल ने इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता शालिनी माथुर को ‘चेंजमेकर अवार्ड’ देकर सम्मानित किया।

राज्यपाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि महिला सशक्तीकरण एवं लिंग अनुपात के लिये सरकार एवं समाज के स्तर से क्या हो रहा है वह ठीक है पर मैं क्या कर रहा हूँ यह सवाल स्वयं से पूछें। जनसहभागिता से महिलाओं को सम्मान और सहभागिता दोनों मिल सकती है। आधी आबादी के सशक्तीकरण के लिये हम क्या कर सकते हैं, इस पर विचार करते हुये आगे बढ़ने का संकल्प लें। राज्यपाल ने बताया कि महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से उनके द्वारा वर्ष 1991 में लोकसभा में निजी विधेयक के रूप में स्तनपान प्रोत्साहन और शिशु आहार विज्ञापन पर प्रतिबंध विषयक विधेयक चर्चा हेतु लाया गया था जो 29 दिसम्बर 1992 को लागू हुआ। इसी प्रकार विपक्ष में रहते हुये दुनिया में पहली महिला लोकल का संचालन मुंबई में करवाया तथा मछुवारी महिलाओं की सहायता के लिये लोकल टेªन कंपार्टमेंट में सुबह 3 घंटे आरक्षित करवाने का कार्य किया। राज्यपाल ने कहा कि महिलाओं के लिये केवल शिक्षा नहीं बल्कि उच्च शिक्षा प्रदान करके समर्थ बनाने की आवश्यकता है। पुरूष और महिला समाज के दो महत्वपूर्ण घटक हैं, दोनों घटक सशक्त होंगे तभी विकास होगा। महिला और पुरूष गाड़ी के दो पहिये के सामान है, एक भी पहिया कमजोर होगा तो गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती। महिला संस्कारवान समाज का निर्माण करती है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तीकरण में स्वयं की भागीदारी सुनिश्चित करें।

श्री नाईक ने कहा कि वे 28 विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। महिला शिक्षा के प्रति दीक्षांत समारोह में नया चित्र देखने को मिल रहा है। वर्ष 2016-17 के शैक्षणिक सत्र में सम्पन्न 26 विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह में 15 लाख से अधिक विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गई थी, जिनमें 51 प्रतिशत छात्राओं को उपाधि मिली थी। लगभग 66 प्रतिशत छात्राओं को उच्च शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए पदक भी दिए गये थे। इस वर्ष 2017-18 में 28 विश्वविद्यालयों में से 26 विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह सम्पन्न होने हैं, जिनमें से अब तक 25 विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोह सम्पन्न हो चुके हैं। 25 विश्वविद्यालयों में उपाधि प्राप्त महिलाओं का प्रतिशत 56 रहा है। इस प्रकार पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई, जो ऐतिहासिक है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा जो ‘सर्व शिक्षा अभियान’ प्रारम्भ किया गया था, अब वह वट वृक्ष का रूप ले चुका है तथा वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किये गये ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान ने इसका विस्तार किया है।

राज्यपाल ने कहा कि भारत में वैदिक काल से अनेक विदुषी नारियों का योगदान रहा है। उन्होंने मैत्री, गार्गी से लेकर झांसी की रानी, बेगम हजरत महल, प्रथम राज्यपाल सरोजिनी नायडू तथा प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी उद्धृत किया। भारतीय ग्रंथों में कहा जाता है कि जहाँ नारी को मान्यता मिलती है वहाँ देवों का वास होता है। भारत में वर्ष 1951 में पुरूषों की साक्षरता दर 27.16 प्रतिशत थी वहीं महिलाओं की साक्षरता दर मात्र 8.86 थी। वर्ष 2011 में पुरूषों की साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत तथा महिलाओं की साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत हो गयी है। उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा में महिलाओं की बढ़ते कदम देखकर विश्वास है कि वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना में अधिक अच्छा चित्र देखने को मिलेगा। आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं जबकि पूर्व में शिक्षित महिला के लिये केवल शिक्षिका या नर्सिंग की सेवा होती थी। इतनी प्रगति के बावजूद भी रोज के समाचार पत्रों में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध देखकर दुःख होता है। उन्होंने कहा कि यह विकृति कैसे समाप्त हो, इस पर विचार करके रोकने का संकल्प लें।

कुलपति प्रवीर कुमार ने कहा कि देश की आधी आबादी को न्यायोचित स्थान और सहयोग मिलना चाहिए। शिक्षा ही महिलाओं को सक्षम और समर्थ बना सकती है। उन्होंने कहा कि सामाजिक और कानूनी बदलाव से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ाने की आवश्यकता है।