नई दिल्ली: दो साल बाद बीत जाने के बाद नोटबंदी के ऐलान से ठीक पहले हुई बैठक की डिटेल पहली बार सामने आई है। उससे ये बात पता चली है कि रिजर्व बैंक ने नोटबंदी की घोषणा से चार घंटे पहले बुलाई गई आनन-फानन की मीटिंग में उस सरकारी दावे को खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया था कि नोटबंदी से काले धन और नकली करेंसी पर रोक लग जाएगी। हालांकि, रिजर्व बैंक ने नोटबंदी को हरी झंडी दी थी। साथ ही यह भी अंदेशा जता दिया था कि इससे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। बता दें कि दो साल पहले 8 नवंबर, 2016 की रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाइव टेलीकास्ट में अपने संदेश में कहा था कि नोटबंदी लागू करने से काले धन और नकली नोटों पर रोक लगाई जा सकेगी।

आरबीआई की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की 561वीं बैठक नोटबंदी के दिन यानी 8 नवंबर, 2016 को शाम 5.30 बजे जल्दबाजी में नई दिल्ली में आयोजित की गई थी। इस बैठक के मिनट्स ऑफ मीटिंग से इस बात का खुलासा होता है कि केंद्रीय बैंक ने नोटबंदी को सराहनीय कदम बताया था मगर इसके नकारात्मक प्रभाव से भी सरकार को आगाह किया था। इस बात का भी खुलासा हुआ है कि आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस मिनट्स ऑफ मीटिंग पर नोटबंदी लागू होने के करीब पांच हफ्ते बाद यानी 15 दिसंबर, 2016 को दस्तखत किए थे। आरबीआई बोर्ड ने नोटबंदी पर कुल छह आपत्तियां दर्ज कराई थीं, जिसे मिनट्स ऑफ मीटिंग में अहम मानते हुए रिकॉर्ड किया गया है।

आरबीआई निदेशकों को वित्त मंत्रालय की तरफ से 7 नवंबर, 2016 को इस बावत प्रस्ताव मिला था, जिस पर बोर्ड डायरेक्टर्स ने सरकारी दावों पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि उच्च मूल्य वाले (1000 और 500) करंसी नोट को प्रचलन से बाहर करने से न तो कालेधन पर रोक लग पाएगी और न ही नकली नोटों की रोकथाम हो सकेगी। मिनट्स ऑफ मीटिंग में वित्त मंत्रालय द्वारा दिए गए जस्टिफिकेशन की लिस्ट दी गई है। काले धन पर मंत्रालय ने व्हाइट पेपर में दर्ज बातें आरबीआई के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सामने रखे, जिसे बोर्ड ने मिनट्स में यूं दर्ज किया है- “अधिकांश काले धन नकद के रूप में नहीं बल्कि वास्तविक क्षेत्र की संपत्ति जैसे सोने या रीयल-एस्टेट के रूप में होता है और इस कदम पर उन संपत्तियों पर कोई भौतिक प्रभाव नहीं पड़ता है।”

नकली नोटों पर मंत्रालय ने बोर्ड को सूचित किया था कि 1,000 और 500 रुपये में इस तरह के नकली नोटों की कुल मात्रा 400 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। अपने तर्क में आरबीआई बोर्ड ने नोट किया कि जाली नोट की कोई भी घटना देश के लिए चिंता का विषय है लेकिन परिचालन में कुल मुद्रा के प्रतिशत के रूप में 400 करोड़ रुपये बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है।

अन्य काउंटर पॉइंट्स में आरबीआई की बोर्ड ने दर्ज किया कि सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और बाजार में प्रचलित उच्च मूल्य के करंसी नोट की मात्रा पर विचार तो किया लेकिन मुद्रास्फीति की दर पर कोई विचार नहीं किया। सरकार के इस तर्क और दावे पर बोर्ड ने अपनी मिनट्स ऑफ मीटिंग में लिखा है, “सरकार ने अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का वास्तविक दर पर उल्लेख किया है जबकि परिसंचरण में मुद्रा में वृद्धि मामूली है। मुद्रास्फीति के लिए समायोजित अंतर इतना कठिन नहीं हो सकता है। इसलिए, यह तर्क पर्याप्त रूप से सिफारिश का समर्थन नहीं करता है।”

बोर्ड ने यह भी लिखा है कि इस पर विचार किया गया है कि उच्च मूल्य के करंसी नोटों को वापस लेने से विशेष रूप से दो क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है: चिकित्सा और पर्यटन। इसलिए, यह इंगित किया गया कि प्राइवेट मेडिकल स्टोर को भी छूट मिलने वाले संस्थानों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए। पर्यटकों को सामना करने वाली समस्याओं को रिकॉर्ड करते हुए आरबीआई के निदेशकों ने नोट किया: “लंबी दूरी के घरेलू यात्री जो केवल उच्च मूल्य वाले नोट ले जा रहे हैं, उन्हें लोग रेलवे स्टेशनों / हवाई अड्डों पर टैक्सी ड्राइवरों और कूलियों को भुगतान के लिए परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इससे पर्यटन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।”

मिनट्स में यह आश्वासन भी शामिल है कि नोटबंदी के प्रस्ताव को लेकर केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच पिछले छह महीने से चर्चा चल रही थी। इस दौरान प्रस्ताव के अधिकतर मुद्दों पर चर्चा की गई थी। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने प्रस्तावित उद्देश्यों के अलावा दर्ज किया है, “नोटबंदी का प्रस्तावित कदम वित्तीय समावेशी प्रक्रिया और इलेक्ट्रॉनिक तरीके के उपयोग को प्रोत्साहित करने का एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है क्योंकि लोग नकद भुगतान की जगह बैंक खातों और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से होने वाले भुगतान के लाभ देख सकते हैं।”

1,000 रुपये और 500 रुपये के बैंक नोटों को वापस लेने के लिए आरबीआई के संकल्प के साथ मिनटों पर हस्ताक्षर किए गए थे लेकिन मिनट्स में ये भी लिखा गया, “बोर्ड को आश्वासन दिया गया था कि सरकार नकदी के उपयोग को कम करने के उपायों पर काम करेगा, बोर्ड ने सरकार के ज्ञापन पर विस्तृत विचार-विमर्श करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि बड़े सार्वजनिक हित में, लाभ इसी में है कि 500 और 1000 रुपये के करंसी नोट को वर्तमान परिसंचरण से वापस ले लिया जाय।”