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लोकसभा संग्राम 14–पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम तय करेगे महागठबंधन होगा या नही

तौसीफ़ कुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। क्या देश की 80 % जनता यह चाहती है कि विपक्षी सियासी दल महागठबंधन बनाकर मोदी की भाजपा के ख़िलाफ़ लोकसभा के महासंग्राम में जाए ? क्या विपक्ष के मुख्यदलों में महागठबंधन बनने में दुशवारियाँ पैदा हो रही है ओर अगर यह सही है तो वह क्या है जिसकी वजह से दूशवारियाँ आ रही है ? क्या महागठबंधन की प्रमुख पार्टी की सुप्रीमो मायावती महागठबंधन में शामिल दलों के साथ तालमेल बैठा पाएगी ? क्योंकि वही एक दल है जिसके पास मोदी के ख़िलाफ़ एकजुट वोटबैंक है वह यूपी में महागठबंधन की मुख्य पार्टी है उसके बिना महागठबंधन के कोई मायने नही है सपा कंपनी के पास जो वोटबैंक माना जाता है वह मोदी की भाजपा को हराने के लिए किसी के भी साथ सीधे जा सकता है वैसे वह सपा कंपनी का बँधवा मज़दूर माना जाता है और है भी इससे इंकार नही किया जा सकता है उसी के चलते उसने अपनी सियासी पहंचान खो दी है लेकिन यह भी सत्य है कि वह मोदी की भाजपा का घोर विरोधी है यही कारण है कि सपा कंपनी बसपा के सामने लेटने जैसी हालत में नज़र आ रही है सपा कंपनी को यह भय सता रहा है कि कही महागठबंधन न होने की सूरत में मुसलमान सीधे बसपा के खेमे में न चला जाए अगर वह सीधे चला गया तो भी यूपी के सियासी परिणाम कुछ और ही होगे और सपा कंपनी के परिवार के सदस्य भी शायद चुनाव न जीत पाए।वैसे महागठबंधन न होने की स्थिति में मुसलमानों की कुटनीतिक रणनीति यह रहने की संभावना है कि जहाँ भी मोदी की भाजपा को जिस दल का प्रत्याशी हराने की स्थिति होगा वह उसके साथ चला जाएगा वह किसी भी दल या व्यक्ति का बँधवा मज़दूर नही रहेगा ? वही सपा कंपनी में हो रही पारिवारिक रार भी किसी से छिपी नही है मुलायम सिंह यादव के बुरे दिनों के साथी रहे व उनके भाई शिवपाल सिंह यादव जिसने हमेशा लक्ष्मण की भूमिका निभाई लेकिन बेटे अखिलेश यादव की महत्वकांक्षा ने सियासी राम-लक्ष्मण के रिस्ते को भी खतम करने की भरपूर्व कोशिश की पर शिवपाल सिंह यादव के जनाधार के चलते उनका ज़्यादा कुछ बिगाड़ नही पाए यही बात सियासत के राम समझते थे उन्होंने कई बार यह बात सार्वजनिक रूप से कही भी कि अगर शिवपाल को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की गई तो सपा कंपनी टूट जाएगी वही हुआ भी शिवपाल सिंह यादव ने अपनी घोर उपेक्षा के चलते पार्टी का गठन कर सपा कंपनी के सीईओ अखिलेश यादव को सीधे चुनौती दे रहे है हालाँकि सपा कंपनी के सीईओ इसको भाव नही देने का दिखावा कर रहा है नही तो मुझे यह कहने में क़तई हिचक नही है शिवपाल सिंह यादव के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे सियासी आकार से सपा कंपनी के सीईओ काफ़ी हताश व परेशान है शिवपाल ने ज़्यादातर जिलों व शहरों में अपनी नवगठित पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के अध्यक्षों की घोषणा कर संगठन खड़ा कर लिया है जो सियासत में सबसे कठिन होता है जिससे उनकी ताक़त बढ़ती जा रही है। सपा में सिर्फ़ केबिन की सियासत करने वाले प्रोफ़ेसर रामगोपल यादव की कानाफूसी के चलते यह सब हुआ है ऐसी सियासी गलियारों में चर्चा का विषय है और एक जनाधार वाले नेता को न चाहते हुए भी अपना झण्डा अपना डन्डा बनाने को विवश होना पड़ा वैसे शिवपाल सिंह यादव को भाजपा से साँठगाँठ करने के आरोप लग रहे है अब सपा कंपनी के यह आरोप कहाँ तक सही है या यह सब उनके बढ़ते जनाधार को रोकने के लिये किया जा रहा है यह कहना मुश्किल है पर लगता ऐसा ही है कि सपा कंपनी शिवपाल के जनाधार से भयभीत है जहाँ तक मैं शिवपाल सिंह यादव को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ उस लिहाज़ से कह सकता हूँ कि शिवपाल सिंह यादव ज़मीनी नेता है उनसे लड़ना आसान नही होगा उनके पास हर तरह के फ़्रेम मौजूद है जिसका जैसा फ़ोटो होता है उसको उसी फ़्रेम में फ़िट कर लेते है अपने सियासी चरख़ा दाँव से बड़े-बड़ों को चित करने वाले मुलायम सिंह यादव शिवपाल सिंह यादव की इस कला को जानते थे है इसी लिए वह शिवपाल को भाई होने के साथ-साथ मानते थे। यूपी में इस तरह की बातें ज़ोर सौर से हो रही है कि महागठबंधन बनेगा नही बनेगा जैसी ख़बरों ने काफ़ी दिनों से आकार लेना शुरू कर दिया है यह चर्चाएँ आम होने लगी कि महागठबंधन में कौन दल होगे और किसकी क्या भूमिका होगी उसका नेतृत्व कौन करेगा यह भी एक सवाल है विपक्ष में यह भी तय नही है कि नेतृत्व कौन करेगा लेकिन सुई घूम फिर कर शुरूआत में कांग्रेस की तरफ़ ही दौड़ने लगती है क्योंकि कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो पूरे भारत में है जिसके पास सभी धर्म जाति के लोगों में अपनी पकड़ है यह बात कटू सत्य है।कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि महागठबंधन पूर्णरूप से तभी आकार लेगा जब देश के पाँच राज्यों में हो रहे चुनावों के परिणाम आ जाएँगे उसके बाद देश की सियासी तस्वीर बदल जाएगी जो दल आज कांग्रेस को कम आंक रहे है वही दल कांग्रेस के क़रीब जाने के लिए उतावले होगे यह बात उन सबकी समझ में आ जाएगी कि कांग्रेस को जनता पसंद कर रही है लेकिन ऐसा तभी संभव हो सकेगा जब पाँच राज्यों के चुनावी परिणाम में कम से कम तीन राज्य में कांग्रेस की सरकारें बने और वह राज्य राजस्थान , मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ हो जहाँ कांग्रेस जीते तो फिर कांग्रेस को कमज़ोर मानने वाले यह ग़लती नही करेगे ऐसा कांग्रेस सहित सियासी पण्डित मानते है।ख़ैर देश की 80% जनता मोदी की भाजपा को हराने के लिए आतुर है पर वह वोट भिन्न-भिन्न दलों में बँटा है जिसकी वजह जातिवाद भाई भतीजावाद को माना जाता है मोदी की भाजपा के पास साम्प्रदायिक वोटबैंक के अलावा कोई और वोटबैंक नही है और उस साम्प्रदायिक वोटबैंक का वोट 20% से ज़्यादा नही है 2014 में मोदी की भाजपा को 31% ही वोट मिला था और उसमें 10 से 12 % वोट ऐसा था जो स्वयंभू गुजरात मॉडल की वजह से मोदी की भाजपा के पास गया था परन्तु वहाँ विकास नाम की कोई रणनीति ही नही है इसी लिए मोदी की भाजपा की इसी झूठ की सियासी बुनियाद पर खड़ी इमारत भराभरा कर गिरने की और दिखाई दे रही है।

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